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अध्याय 16
मध्य भारत
मध्य भारत में पूर्व-मध्यकालीन कला-कृतियाँ
बारहवें अध्याय में निम्नलिखित सामग्री का विवेचन पा चुका है :
(१) गुप्तकालीन उदयगिरि की जैन गुफा और उसकी तीर्थंकर-प्रतिमाएँ;
(२) विदिशा के निकटवर्ती दुर्जनपुर से हाल ही में उपलब्ध महाराजाधिराज रामगुप्त के
शासन-काल की अभिलेखांकित जैन प्रतिमाएँ; तथा
(३) विदिशा से प्राप्त उत्तर-गप्तकालीन एक कायोत्सर्ग तीर्थंकर-प्रतिमा।
विदिशा की कायोत्सर्ग तीर्थंकर-प्रतिमा मध्य भारत की गुप्त-कालीन मूर्ति-निर्माण-कला के उत्तरोत्तर विकास को प्रदर्शित करती है। यद्यपि बेसनगर में तत्संबंधी किसी जैन मंदिर का अवशेष उपलब्ध नहीं है तथापि विदिशा के समीपवर्ती कुण्डलपुर (जिला दमोह) के जैन मंदिर-समूह से पूर्वोक्त कला-परंपरा के जैन मंदिरों के वास्तुशिल्प का भलीभाँति अनुमान किया जा सकता है । पूर्वगुप्त-कालीन मंदिर-शैली की परंपरा को आगे ले जानेवाले ये मंदिर चौकोर पत्थरों से निर्मित समतल शिखर हैं जिनकी आयोजना में मात्र एक वर्गाकार गर्भगृह तथा कम ऊँचे सादा वेदी-बंन्ध
सी) पर निर्मित मखमण्डप है (चित्र १३ क) । गप्त-कालीन कृतियों के विपरीत इन मंदिरों के मुखमण्डपों में भारी चौकोर स्तंभों का उपयोग हुआ है । स्तंभों के निचले भाग घट-पल्लव प्राकृतियों से अलंकृत हैं तथा उनके शीर्षभाग में सादे घुमावदार टोड़े लगे हुए हैं। इस प्रकार के सादे स्तंभों तथा द्वार-शाखाओं से युक्त ये मंदिर आठवीं शताब्दी से पूर्व के नहीं हैं।
कूण्डलपुर स्थित बड़े बाबा में तीर्थंकरों और यक्षियों (चित्र ६३ ख तथा ६४) की पृथक पड़ी हुई मूर्तियाँ बहुत बड़ी संख्या में मिली हैं जिनमें कुछ ही प्रतिमाएँ मूर्ति-विज्ञान की दृष्टि से मूल्यवान हैं, किन्तु हैं सभी स्थूल और अपरिष्कृत ।
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