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अध्याय 8 ]
पश्चिम भारत
जूनागढ़ में गिरनार के समीप साधुओं के लिए निर्मित लगभग बीस शैलोत्कीर्ण गुफाएँ हैं जो बाबा-प्यारा-मठ की गुफाएँ कहलाती हैं । बर्जेस ने इनका वर्णन किया है। तीन पंक्तियों में बनी इन गुफाओं में गुफा ख के (चित्र ३८) के ऊपर चैत्य-गवाक्ष-अलंकरण का प्राद्य रूप मिलता है । बर्जेस द्वारा वर्णित गुफा 'एफ' एक आदिम कोठरी है, जिसकी छत समतल है और मूलरूप से चार स्तंभों पर आधारित है, इसका पृष्ठभाग अर्ध-वर्तुलाकार है। इस समूह की गुफा सं० 'के' में दो कोठरियाँ हैं, जिनमें उत्कीर्ण हैं मंगल-कलश और स्वस्तिक, श्रीवत्स, भद्रासन, मीनयुगल आदि चिह्न जो मथुरा के आयाग-पटों पर मिलते हैं (रेखाचित्र ५) । इन चिह्नों से इन गुफाओं का जैन स्वरूप अंतिम रूप से सिद्ध नहीं होता क्योंकि एक कोठरी के सम्मुख इन चिन्हों के बनाने का अपूर्ण-प्रयास (कदाचित् परवर्ती) किया गया प्रतीत होता है। किन्तु रुद्रदामन के पुत्र जयदामन के पौत्र रुद्रसेन के समय के एक खण्डित उत्कीर्ण शिलापट्ट (कोठरी १ के सामने भूमिगत) के मिलने से, जिसमें केवल-ज्ञान प्राप्त करनेवालों एवं कालजयी लोगों का उल्लेख है, यह पता चलता है कि कम से कम दूसरी शती ई० में इन गफानों पर जैन मतावलंबियों का अधिकार था । यहाँ किन्हीं निश्चित बौद्ध चिह्नों का
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रेखाचित्र 5. बाबा प्यारा की गुफा का प्रवेशद्वार (बर्जेस के अनुसार, गुफा सं० 'के')
1 बर्जेस (जेम्स). एण्टिविटीज प्रॉफ काठियावाड़ एण्ड कच्छ. प्रॉक्यॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, न्यू इम्पीरियल
सीरीज, 2. 1876. लंदन. पृ 139 तथा परवर्ती. / सांकलिया (एच डी). प्रायॉलॉजी प्रॉफ गुजरात.
1941. बम्बई. 47-53. 2 मजूमदार (आर सी) तथा पुसालकर (ए डी), संपा. एज प्रॉफ इम्पीरियल यूनिटी. 1960. बम्बई .
पृ418 पर ए एम घटगे ने यह सुझाया है कि वह दमयसद या रुद्रसिंह-प्रथम था. 3 बर्जेस, पूर्वोक्त./ सांकलिया, पूर्वोक्त.
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