________________
अध्याय 12 ]
मध्य भारत
कुछ पहले की, एक अन्य कायोत्सर्ग प्रतिमा है पार्श्वनार्थ की। वस्त्र-विन्यासरहित इस प्रतिमा में तीर्थकर की संपूर्ण प्राकृति के पीछे कुण्डली मारे हुए एक विशाल नाग को दर्शाया गया है, जिसने तीर्थंकर के शीर्ष पर अपने फण से एक छत्र बनाया हुआ है (चित्र ६४) ।
ऐसा प्रतीत होता है कि गुप्त-काल में नचना के ब्राह्मण धर्म-केंद्र के निकट ही सीरा पहाड़ी पर जैन धर्म का केंद्र था। इस क्षेत्र का यदि पुनः उत्खनन किया जाये तो और अधिक जैन अवशेष, मात्र इसी स्थान से ही नहीं अपितु इसके समीपवर्ती क्षेत्रों से भी, उपलब्ध हो सकते हैं।
कुछ ही समय पूर्व जोना विलियम्स द्वारा गुप्त-कालीन दो सुंदर तीर्थकर-प्रतिमाओं को प्रकाश में लाया गया है, जो इस समय मध्यप्रदेश के पन्ना स्थित राजेन्द्र उद्यान में सुरक्षित हैं। बताया गया है कि ये प्रतिमाएँ नचना से उपलब्ध हुई हैं। विलियम्स द्वारा प्रस्तुत पहले चित्र में तीर्थंकर को पादपीठ स्थित आसन पर पद्मासन-मुद्रा में दर्शाया गया है। पादपीठ के केंद्र में मुखदृश्यांकित धर्म-चक्र
और उसके पार्श्व में दोनों किनारों के निकट सिंह अंकित हैं । धर्म-चक्र के प्रत्येक छोर पर घटनों के बल बैठा हा एक भक्त है, जो संभवतः तीर्थकर का गणधर (प्रथम अनुयायी) या फिर कोई साध है।
दूसरी प्रतिमा में पादपीठ के मुखभाग पर चार भक्त अंकित हैं । प्रतिमा की मुखाकृति और सिर पूर्णरूपेण सुरक्षित है तथा कंधे और धड़ की संरचना में उत्कृष्ट गुप्त-कला-परंपरा का निर्वाह हुआ है। जहाँ तक मुखाकृति की भावाभिव्यक्ति का संबंध है, इसे गुप्त-कालीन श्रेष्ठ तीर्थंकर-मृतियों की श्रेणी में रखा जा सकता है, यद्यपि यह प्रतिमा विलियम्स के प्रथम चित्र की प्रतिमा से कुछ समय पश्चात् की है। यहाँ विलियम्स ने यह भी उल्लेख किया है कि इन तीर्थंकर-प्रतिमाओं और सारनाथ की प्रसिद्ध बुद्ध-प्रतिमा में समानता है।
__ मथुरा संग्रहालय की प्रतिमा क्रमांक बी-६२ इत्यादि, नचना, सीरा पहाड़ी से प्राप्त तीर्थकर-मूर्तियाँ, उदयगिरि की गुफा स्थित पार्श्वनाथ की खंडित प्रतिमा तथा विदिशा से प्राप्त रामगुप्त की शासनकालीन तीन प्रतिमाओं से ऐसा ज्ञात होता है कि गुप्त-काल में तीर्थंकर-प्रतिमाओं के कई निर्माण-केंद्र रहे होंगे । विदिशा से प्राप्त मूर्तियाँ निस्संदेह भारी-भरकम तथा अधिक मांसल हैं।
यह असंभव नहीं कि झाँसी जिले के देवगढ़ किले में जैन बस्ती का प्रारंभ प्रायः देवगढ़ स्थित गुप्त-कालीन प्रसिद्ध दशावतार मंदिर के समकालीन हो । देवगढ़ की तीर्थकर-मूर्तियों के अध्ययन में क्लौस ब्रन ने जिन दो मूर्तियों के चित्र (उनका रेखाचित्र २०, अनुकृति ८ तथा रेखाचित्र २१, अनुकृति है)3 प्रकाशित किये हैं, उनके विषय में विलियम्स ने यह संदेह व्यक्त किया है कि वे मथरा प्रतिमा
1 विलियम्स (जोना). टू न्यू गुप्ता जिन इमेजेज. अोरियण्टल पार्ट. 18,43 1972; 378-80. 2 [ द्रष्टव्य, अध्याय 10-संपादक ] 3 ब्रून (क्लौस). जिन इमेजेज प्रॉफ देवगढ़. 1969 . लीडन.
137
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org