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अध्याय 15 ]
पूर्व भारत
मस्तक पर बहुपर्णी छत्र है जिसके दोनों ओर एक मालाधारी युगल उड़ता दिखाया गया है। छत्र के उपर दो हस्तयुगल संगीतवाद्य बजाते हुए अंकित हैं। मूर्ति के पीछे शिलापट्ट पर बारह-बारह की पंक्तियों में चौबीस तीर्थंकर कायोत्सर्ग-मद्रा में उत्कीर्ण किये गये हैं। इस मंदिर (चित्र ८३ ख) के विषय में मित्रा ने लिखा है :
'उड़ीसा के मंदिरों की भाँति उसकी बाड के कई भाग हैं--पाभाग, जंघा और बरण्ड । एक संकीर्ण मंच (उपान) पर निर्मित पाभाग के सबसे नीचे के चार गोटों खुरा, कुंभ, खुरा और उलटे खुरा में से अंत के दो थोड़े-थोड़े अंतर पर बनाये गये हैं और उनपर हृदयाकार कला-प्रतीक अंकित हैं। जंघा के उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भागों में छह भित्ति-स्तंभ निर्मित किये गये हैं। इनमें से तीन मध्यवर्ती प्रक्षेप के एक ओर है तथा तीन दूसरी ओर । अंतिम भित्ति-स्तंभ में एक देव-कूलिका है, जो पार्श्व देवताओं के लिए बनायी गयी थी (वे अब उसमें नहीं हैं)। शीर्षभाग के दो गोटों - खुरा और उल्टे खुरा - के अतिरिक्त भित्ति-स्तंभों का शेष भाग सपाट है । बरण्ड एक प्रक्षिप्त गोटा है, जिसके ऊपर बाड और शिखर को पृथक करनेवाले अंतराल पर गोटों की एक ऐसी शृंखला निर्मित है जो मंदिर के शिखर का रूप ले लेती है। इनमें से अब पाँच ही गोटे शेष हैं।
'मध्यवर्ती प्रक्षेप का मुखभाग (पूर्वी) शेष भागों से अधिक मोटा है और उसी में प्रवेशद्वार है। द्वार के ऊपर पाँच अप्रकट धरनें हैं, जिनके ऊपर एक सरदल है, जो मध्यवर्ती प्रक्षेप की पूरी चौड़ाई तक फैला हुआ है ।
मंदिर की रूपरेखा त्रि-रथ शैली में है। इसका अन्तःभाग ४'२" (१.४० वर्ग मीटर) वर्गाकार है। भित्तियों की मोटाई २' १" (६३ सें. मी.) है, जिससे कि बहिर्भाग अन्तः भाग की अपेक्षा द्विगुणित हो गये हैं। मंदिर के अन्तःभाग में दो शिला-पट्टों से निर्मित गर्भमुद (गर्भगृह का निम्नतम वितान) के भीतर की ओर बढ़ती हई धरनें हैं। गर्भ-मद के ऊपर कम से कम एक कोठरी और थी, जिसमें प्रवेश के लिए द्वार के सरदल पर संकीर्ण प्रवेशमार्ग बनाया गया है।'
इस ग्राम में उपर्युक्त अवशेषों के अतिरिक्त, इसी युग की कुछ और खण्डित जैन मूर्तियाँ हैं।
अंबिकानगर के सामने चिटगिरि में कुछ जैन अवशेष हैं, जिनमें कायोत्सर्ग-मुद्रा में खड़े तीर्थकर की एक मूर्ति भी है। इसके पादपीठ पर अंकित लांछन हरिण-जैसा प्रतीत होता है, अतएव यह तीर्थकर शान्तिनाथ की प्रतिमा हो सकती है।
अंबिकानगर के पूर्व में लगभग ४ किलोमीटर दूर स्थित बरकोला जैन धर्म का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, जैसा कि इस स्थान पर विद्यमान अवशेषों से विदित होता है। इस स्थान से प्राप्त उल्लेखनीय अवशेषों में अपनी सामान्य विशेषताओं से युक्त एक अंबिका की मूर्ति है, जिसमें नीचे लटकते हुए उसके
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