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अध्याय 15 ]
पूर्व भारत
कलकत्ता के बंगीय साहित्य परिषद् संग्रहालय में सुरक्षित है । इस प्रतिमा के पृष्ठभाग पर नवग्रह उत्कीर्ण हैं, पाँच एक ओर तथा चार दूसरी ओर । पादपीठ पर तीर्थंकर का लांछन हरिण अंकित है ।
जिला बर्दवान के ही सात देउलिया में, कायोत्सर्ग - मुद्रा में खड़े और अपने-अपने लांछनों के साथ अंकित ऋषभदेव, महावीर, पार्श्वनाथ और चंद्रप्रभ की एक चौमुखी तथा ऋषभ, पार्श्व और महावीर (?) ( जिसके नीचे का भाग टूट गया है) की अलग-अलग मूर्तियां मिली हैं जिनपर चारों ओर विभिन्न तीर्थकरों की सात लघु आकृतियाँ उत्कीर्ण हैं । उसी स्थान से एक अद्वितीय प्रस्तर- पट्ट प्राप्त हुआ है जिसपर वृषभ लांछन सहित ऋषभनाथ और कायोत्सर्ग-मुद्रा में तीर्थंकरों की सात पंक्तियाँ उत्कीर्ण हैं । ऋषभनाथ छत्रत्रय के नीचे पद्मासन मुद्रा में विराजमान हैं। उनके दोनों ओर एक-एक चमरधारी अनुचर है । ऊपर दुन्दुभि या करताल बजाते हुए हाथ दिखाये गये हैं । 2 पद्मासनासीन ऋषभनाथ के नीचे सात पंक्तियों में तीर्थंकरों की एक सौ अड़तालीस मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। जैसा कि पी०सी० दासगुप्ता का मत है, यह (चित्र ८२ क ) कदाचित् अष्टापद तीर्थ का शिल्पांकन है । 3
इस प्रस्तर - पट्ट की प्राप्ति से इस मान्यता को आधार मिलता है कि सात देउलिया का मंदिर ( चित्र ८२ ख ) भी मूलतः जैन है । 4
सात देउलिया का ईंटों से निर्मित मंदिर उड़ीसा के मंदिरों की रेख-शैली का है। इसका गर्भगृह सीधा और लंबाकार है और उसपर वक्ररेखीय शिखर है । ग्रामलक और सामान्य स्तूपिकाएँ भग्न हो चुकी हैं। सरस्वती लिखते हैं, 'इस मंदिर की ध्यान देने योग्य एकमात्र विशेषता यह है कि गभृगृह के लघुकक्ष पर अनेकों उल्टे छज्जे निर्मित हैं जो प्रक्षिप्त कपोत का-सा आकार ग्रहण कर लेते हैं जिसपर शिखर आरंभ होता है। गर्भगृह और शिखर के अग्रभाग सूक्ष्म पट्टिकाओं में विभक्त हैं, यह एक ऐसी आयोजना है, जो अग्रभागों के रथों और पगों के रूप में विभाजन के फलस्वरूप हुई होगी । इसके अतिरिक्त गर्भगृह की भित्तियाँ सपाट हैं किन्तु शिखर पर चैत्य- गवाक्ष और पत्रावलियों
1 वही.
2 दासगुप्ता (पीसी). ए रेयर जैन आइकॉन फ्रॉम सात देउलिया. जैन जर्नल 7 ; 1973 ; 130 तथा परवर्ती.
3 जैन परंपरा के अनुसार ऋषभनाथ के पुत्र भरत ने उस पर्वत पर सर्वप्रथम स्तूप और मंदिर बनवाया, जिसपर उनके पिता ने निर्वाण प्राप्त किया । 'मंदिर और स्तूप बनवाकर भरत ने पर्वत की उपत्यका और अधित्यका के मध्य आठ सोपान (अष्टापद) बनवाये, इससे उस पर्वत का नाम श्रष्टापद पड़ गया । यहाँ भी प्रथम जैन मंदिर की परिकल्पना अंतर्निहित है, जो एक आठ सोपानवाले पर्वत या आठ सोपानवाले जिग्गुरात या आठ सोपान वाले स्तूप के रूप में थीं. शाह ( उमाकांत प्रेमानंद). स्टडीज इन जैन घाट. 1955. बनारस. पू 128.
4 बर्दवान में प्राप्त जैन मूर्तियों में से ऋषभनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभ की एक चौमुखी और आदिनाथ की दो मूर्तियाँ (लगभग दसवीं शती) उल्लेखनीय हैं, जो अब कलकत्ता के प्राशुतोष म्यूजियम ऑफ इण्डियन आर्ट में संगृहीत हैं ।
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