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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पूर्व से 300 ई०
[ भाग 2
अभाव महत्त्वपूर्ण है । अतः यह मानना गलत नहीं होगा कि गिरनार के पास जैनों का एक विहार था ।
धवला टीका के प्रणेता वीरसेनाचार्य वर्णित एक दिगंबर परंपरा के अनुसार महावीर - निर्वाण के ६८० वर्षों पश्चात्, अर्थात् पहली शती ईसवी के अंत में या दूसरी शती में महान् जैन मुनि श्राचार्य धरसेन सौराष्ट्र में गिरिनगर ( गिरनार ) के समीप चन्द्रशाला गुफा में पुष्पदंत और भूतबली को धर्मशास्त्र की शिक्षा दिया करते थे । हीरालाल जैन ने इस गुफा की पहचान बाबा- प्यारा मठ की गुफा से की है । 2 धरसेन से शास्त्र का अध्ययन कर चुकने के पश्चात् वीरसेन ने पुष्पदंत और भूतबली द्वारा रचित सूत्रों पर अपनी टीका लिखी । पूर्वोक्त शिलालेख और दिगंबर परंपरा को ध्यान में रखते हुए, बाबा- प्यारा मठ की गुफाओं का जैन धर्म से संबंधित होना स्पष्ट प्रतीत होता है । कल्पसूत्र स्थविरावली में उल्लिखित स्थविर ऋषिगुप्त से प्रारंभ होनेवाली सोरठ्ठिय- साहा (शाखा) से पुनः यह संकेत मिलता है कि ईसा पूर्व लगभग दूसरी - पहली शती में सौराष्ट्र में जैन साधुओं का एक संघ विद्यमान था ।
उत्तर-पश्चिम में जैन कला के संबंध में मार्शल का यह मत था कि सिरकप, तक्षशिला, का स्तूप ( ब्लाक 'एफ' ) एक जैन स्तूप रहा होगा, 3 क्योंकि उसके तलघर की देवकुलिका में बने कलाप्रतीक दो, सिरवाले गरुड़, की समता उन्हें मथुरा के प्रयाग-पट पर बने स्तूप शिल्पांकन में मिली, जिसे लोणशोभिका की पुत्री वासु ने निर्मित कराया था । किन्तु इस स्थल के पर्याप्त उत्खनन के पश्चात् भी किसी अन्य जैन पुरावशेष के न मिलने संबंधी तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती । जैन परंपराएं उत्तरापथ में प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र बाहुबली द्वारा केवल एक धर्म चक्र स्थापित करने का उल्लेख अवश्य करती हैं ।' हरिभद्र कृत आवश्यक नियुक्ति की आवश्यक - वृत्ति
1 तेरण इव सोरट्ठ- विसय गिरिनिनयर पट्टण चंदगुहा - ठियेण ग्रठ्ठांग- महा-निमित्त - पारनेरा गंथ-बोच्छेदो होहदि त्ति जादभयेन पवयरण बच्छलेण दक्खिणावहाइरियाणम् महिमाए मिलियाणम् लेहो पेसिदो-- धबला - टीका.
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जैन (हीरालाल ). भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान. 1962 भोपाल. पृ 41-42, 75-76, 309-103 मार्शल (जॉन ). गाइड टु तक्षशिला. तृतीय संस्करण. 1936. दिल्ली. पृ 88. चित्र 13. / मोतीचन्द्र. कुछ जैन अनुश्रुतियाँ और पुरातत्व. प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ. पृ 229-49.
4 वोगेल (जे फ). केटेलॉग श्रॉफ दि आई यॉलॉजिकल म्युजियम एट मथुरा 1910. इलाहाबाद. पृ 184 तथा परवर्ती. / वासुदेवशरण अग्रवाल ने जर्नल ग्रॉफ द यू पी हिस्टॉरिकल सोसायटी. 23; 1950; 69-70 में इस शिलालेख के पहले किये गये पाठ में संशोधन किया है.
5 बृहत्कल्पभाष्य. 5. गाथा 5824 चक्र शब्द का उल्लेख करती है जिसकी व्याख्या टीकाकार ने 'उत्तरापथे धर्म-चक्रम्' की है.
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