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वास्तु स्मारक
विचाराधीन अवधि में पूर्वी भारत में जैन वास्तु स्मारकों और मूर्तियों के बहुत कम अवशेष प्राप्त हुए हैं । यह संभव है कि ब्राह्मण धर्म और बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के कारण इस प्रदेश से जैन धर्म तिरोहित हो गया हो इस बात के निश्चित प्रमाण हैं कि इस अवधि में और इसके कुछ समय उपरांत जैन प्रतिष्ठान अन्य लोगों के स्वामित्व में चले गये । उदाहरण के लिए, राजगिर स्थित सोनभण्डार गुफाओं पर वैष्णवों ने अधिकार कर लिया था। इसी प्रकार कुछ समय उपरांत बाटवीं शताब्दी में, पहाड़पुर स्थित जैन विहार को धर्मपाल ने बौद्ध बिहार के रूप में परिवर्तित कर दिया था। इस प्रकार के परिवर्तनों का प्रभाव जैन कला के अवशेषों की संख्या पर भी उस भूमि में पड़ा होगा, जिसने जैनधर्म को पालने - पोसने का गौरव प्राप्त किया है। 4
इस अवधि की जैन साहित्यिक परंपरा में विभिन्न प्रकार के भवनों और कला-प्रतीकों का अद्भुत वर्णन मिलता है, जिसमें विमानों, तोरणों, स्तंभों, डाटों, राजमहलों उद्यानों, सभा-भवनों, क्रीड़ांगनों, वीथिकाओं आदि के विवरणों के साथ धार्मिक और नागर स्थापत्य का भी समावेश है ।
अध्याय 11
पूर्व भारत
1 तुलनीय कुरैशी (एम एष) तथा पोष (ए). राजगिर सं 4. 1956 दिल्ली 24.
पृ
2 एपिग्राफिया इण्डिका. 201929-30 60.
3
यह संभव है कि इस युग की जैन प्रतिमाओं को फिर से तराशा गया हो और उनसे अन्य मतों के देवताओं की धरपल (बांकुरा) में मिलता है जहाँ पार्श्वनाथ की मूर्ति एन० के० बंदोपाध्याय कृत बांकुरार मंदिर, जिसे डी० वर्ती ने बाबू छोटेलाल जैन स्मृति ग्रंथ, कलकता, 1967 के पू 49 पर उद्धृत किया है। कर्ती यह मत भी व्यक्त करते हैं कि बंगाल में शैव मत का विकास जैन धर्म से हुआ, वही पृ 49.
०
मूर्तियां बनायी गयी हों इस प्रकार का एक उदाहरण को विष्णु की मूर्ति में परिवर्तित किया गया तुलनीय
र 145/ सरस्वती (बी) उड़ीसा वही, पृ 165.
4 मुखर्जी (एससी)
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हेरिटेज ऑफ बंगाल इन रिलेशन टू जैनिज्म नग्न इन बंगाल वही पु 141 / बेहरा
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