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अध्याय 11]
पूर्व भारत
अवशिष्ट जैन वास्तु-स्मारकों का रूप-प्राचुर्य या विषय-वस्तु का वैविध्य स्पष्ट ही इन वर्णनों से मेल नहीं खाता । इस अवधि के जो कुछ वास्तु-स्मारक राजगिर में हैं, मुख्यतः वे ही हमारे अध्ययन की सामग्री हैं। ये हैं वैभारगिरि पर एक ध्वस्त मंदिर और इसी पहाड़ी की दक्षिणी ढलान पर पत्थर काटकर बनायी गयी दो सोनभण्डार गुफाएं (दोनों का वर्णन नीचे किया जा रहा है), जो इसी युग की मानी जाती हैं।
__ दूसरा महत्त्वपूर्ण जैन वास्तु-स्मारक पाँचवी शताब्दी में विख्यात था, किन्तु आगे चलकर लुप्त हो गया । उसका पता (गुप्त) वर्ष १५६ (४७६ ईसवी) के पहाड़पुर के ताम्रपत्र-अभिलेख से चलता है। यह विशाल जैन विहार वट-गोहाली में था और उसके अधिष्ठाता निग्रंथ आचार्य (श्रमणाचार्य) गुहनन्दिन थे, जो काशी के पंचस्तूप-निकाय या नव्यावकाशिका से संबंधित थे । आगे चलकर इस विहार का विस्तार किया गया और उसमें बौद्धों का विशाल मंदिर और विहार बना दिये गये । जो भी हो, इस स्थल पर जो खुदाई की गयी है, उससे पता चला है कि यद्यपि विहार का विस्तार किया गया था, तथापि सर्वतोभद्र प्रकार की रचना के अनुरूप उसकी मूल रूपरेखा वैसी ही बनी रही। विकास की दृष्टि से यह रूपरेखा विशेष रूप से जैन ही है। अपने चरमोत्कर्ष के दिनों में वट-गोहाली का विहार जैन धार्मिक साधना का एक सक्रिय केन्द्र था। जब ह्वेनसांग पुण्ड्रवर्धन क्षेत्र में आया, तब उसने वहाँ एक सौ देव-मंदिर देखे जहाँ विभिन्न मतावलंबी एकत्र होते थे। उनमें नग्न निग्रंथों की संख्या सबसे अधिक होती थी।
राजगिर के अवशेष
राजगिर में सोनभण्डार नामक दो शैलोत्कीर्ण गुफाएँ हैं जिनका शिल्प-कौशल संरचनात्मक भवनों के लिए अपेक्षित शिल्प-कौशल से भिन्न है। इन पूर्वी और पश्चिमी गुफाओं (चित्र ५१
1 एपिग्राफिया इण्डिका. 20; 1929-30; 59 तथा परवर्ती. 2 शिलालेख की छठी और तेरहवीं पंक्ति में उल्लिखित पंच-स्तूपान्वय की स्थापना श्रुतावतार के अनुसार पुण्ड्रवर्धन
के अहद्बलय प्राचार्य द्वारा की गयी. तुलनीय : छोटेलाल जैन का लेख, अनेकांत. 1966, अगस्त; 239.
अन्वयों के लिए और तुलनीय : देव (एस बी). हिस्ट्री प्रॉफ जैन मॉनकिउम. 1956. पूना. पृ 558. 3 फग्र्युसन (जे). हिस्ट्री प्रॉफ इंडियन एण्ड ईस्टर्न प्राकिटेक्चर. खण्ड 2. 1906. लंदन. ' 28. / मुखर्जी, पूर्वोक्त,
पृ 149. इस प्रकार की रूपरेखा संभवतः जैन समवसरण के आधार पर बनी होगी । समवसरण और उनकी प्राचीनता के लिए द्रष्टव्य : शाह (उमाकांत प्रेमानंद). स्टडीज इन जैन पार्ट. 1955. बनारस पृ 123 तथा परवर्ती. इसी प्रकार की रूपरेखा राजस्थान में प्रोसिया और सादड़ी में तथा खजुराहो के चौंसठयोगिनी मंदिर
में देखने को मिलती है. फिशर (के). केज एण्ड टेम्पल्स ऑफ द जैन्स. 1957. अलीगंज (एटा). 5. 4 बील (एस). बुद्धिस्ट रिकार्ड स प्रॉफ द वेस्टर्न वल्र्ड. खण्ड 2. 1906. लन्दन. पृ 195. 5 कुरैशी तथा घोष, पूर्वोक्त, पृ 26, चित्र 7 क. | कुरैशी (एम एच). लिस्ट प्रॉफ ऐंश्येण्ट मॉनुमेण्टस प्रोटेक्टेड
अंडर एक्ट 7 प्रॉफ 1904 इन द प्रोविन्स प्रॉफ बिहार एण्ड उड़ीसा. आर्क यॉलॉजकल सर्वे ऑफ इण्डिया, न्यू इंपीरियल सीरीज.51.1931. कलकत्ता.प 120 तथा परवर्ती. चित्र 80-81.
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