________________
अध्याय 9 ]
दक्षिण भारत
चजिवन अतनन वोलियन ने किया था। इस अभिलेख में एक मुशगै अर्थात् धूप और पानी से बचाव के लिए गुफा के सामने लकड़ी की बल्लियों और ताड़पत्रों से बने हुए एक अस्थायी छप्पर के निर्माण का रोचक उल्लेख है।
यहाँ अज्जणन्दि की एक मूर्ति है, जिसपर उत्कीर्ण एक परवर्ती वट्ठेजुत्तु अभिलेख में उनके नाम का उल्लेख है।
३-मांगुलम् (ईसा-पूर्व द्वितीय-प्रथम शताब्दियाँ)--यह ग्राम अरिट्टापट्टि के समीप है और यहाँ की पहाड़ी कजुगुमलै कहलाती है। पहाड़ी पर गुफाएँ हैं जिनमें शैलोत्कीर्ण शय्याएँ और छह ब्राह्मी अभिलेख हैं । इनमें से चार अभिलेखों में जैन आचार्य कणिनन्द का नाम आया है। प्राचीनतम ब्राह्मी अभिलेख संभवतः यहीं हैं और इनकी पुरालिपि के आधार पर तथा एक प्राचीन पाण्ड्य नेडजेजियन् के संदर्भ के कारण इनका समय ईसा-पूर्व द्वितीय-प्रथम शताब्दियाँ माना गया है (चित्र ३६ क)।
इनमें से एक अभिलेख में उल्लेख है कि वेल-अरै नामक स्थान से आये किसी निगम के एक व्यापारी ने जाली (पर्ण ? ; पिण-ऊ) बनवायी।
४-मुत्त प्पट्टि (समणरमलै) (ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दियाँ)-मदुरै के पश्चिम में पाठ किलोमीटर दूर, पूर्व-पश्चिम तीन किलोमीटर फैली हुई चट्टानी पहाड़ियों की एक श्रेणी समणरमले (समणों या जैनों की पहाड़ी) कहलाती है। इन पहाड़ियों का दक्षिण-पश्चिमी छोर कीज़ कुयिलकुडि (कीज़क्कुडि) ग्राम के सामने और उत्तर-पश्चिमी छोर मुत्तुप्पट्टि ग्राम के निकट पड़ता है। इन पहाड़ियों पर विभिन्न स्थानों पर शय्याओं और ब्राह्मी अभिलेखों सहित अनेक गुफाएँ हैं। पहाड़ियों पर आठवीं-नौवीं शताब्दियों की वट्ट जुत्तु लिपि में अभिलेखांकित परवर्ती जैन मूर्तियाँ मिलती हैं।
मुत्तुप्पट्टि के पास की गुफाओं में शय्याएँ हैं जिन्हें स्थानीय बोली में पंच-पांडवर-पडुक्क कहते हैं। इनके ब्राह्मी अभिलेखों में आवासकर्ताओं और दाताओं के नामों का उल्लेख है। आठवींनौवीं शताब्दियों की मूर्तियाँ महावीर, उनके अनुचरों और उनके देव-देवियों का प्रतिनिधित्व . करती हैं।
कीज़क्कुडि के समीप पेच्चिपल्लम और पेट्टिप्पोडलु नामक दो गुफाएँ हैं । इनमें से दूसरी कोंगर पुलियंगुलम् नामक ग्राम के सामने स्थित है । कोंगर पुलियंगुलम् (सेत्तिप्पोडवु गुफा) के ब्राह्मी अभिलेख रोचक हैं, क्योंकि उनमें उल्लेख है कि गुफा की रक्षा के लिए कूर या वितान, पत्तों और घास-फूस का उपयोग किया गया । यहाँ की और पेच्चिपल्लम् की आठवीं / नौवीं शताब्दी की मूर्तियों में पार्श्वनाथ तथा अन्य तीर्थंकरों और अंबिका, अजिता, आदि यक्षियों की मूर्तियाँ हैं। उनमें प्रख्यात जैनाचार्य अज्जणन्दि की मूर्ति भी है।
101
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org