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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पू० से 300 ई०
[ भाग 2 महत्त्व के हैं। तथापि, यह आश्चर्यजनक है कि यहाँ के ब्राह्मी अभिलेखों का समय मदुरै के अभिलेखों से बाद का माना जाता है। यह आशंका बहुत तर्कसंगत होगी कि अलग-अलग अक्षरों के विकास की अवस्थाओं का बोध करानेवाले इन ब्राह्मी अभिलेखों का समयांकन अन्य ऐतिहासिक और भौगोलिक आधारों को महत्त्व न देते हुए केवल पुरालिपि-विज्ञान के आधार पर विश्वसनीय है या नहीं । यह सुझाव उपयुक्त होगा कि पाण्ड्य राज्य के मध्यभाग की ओर बढ़ते हुए जैन इन पहाड़ियों के परिसर में ठहरे थे।
२३-अरुनत्तर पहाड़ी के लगभग १० किलोमीटर दूर अर्धनारीपलैयम् नामक स्थान है, जिसमें एक चट्टान पर छेनी से शय्याएं उत्कीर्ण की हुई हैं। इस चट्टान के पार्श्व में ऐवरसुनै (पाँचों का स्रोत)1 नामक एक जलस्रोत है।
कोयम्बतूर जिला
इरोद तालुक :
२४-अरच्चलूर (ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दियाँ) - अरच्चलूर के ब्राह्मी अभिलेखों का उल्लेख पहले किया जा चका है। उनमें से एक दाता के रूप में तेवन् चाट्टन नामक जौहरी का नाम आता है।
उत्तर अर्काट जिला
चेय्यर तालुक:
२५-ममन्दुर (ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दियाँ)_यह उन स्थानों में से है, जहाँ के प्राचीन जैन प्रतिष्ठानों को या तो नया आकार दिया गया या वे शैव रूप में परिवर्तित कर दिये गये। एकमात्र ब्राह्मी अभिलेखयुक्त यह गुफा स्थानीय पहाड़ी की दुर्गम ऊँचाई पर स्थित है और अभिलेख में उल्लेख है उस राजा का, जिसने तेनूर पर आधिपत्य किया और उस तचन (राजगीर)का, जिसने इस कुरु या पहाड़ी को काटा । विशेष महत्त्व तो इस पहाड़ी के शैलोत्कीर्ण गुफा-मंदिरों का है, जिनका समय महेन्द्रवर्मन-प्रथम का शासनकाल माना जा सकता है, जिसके जैन धर्म से शैव धर्म में परिवर्तित होने का आधार तेवारम् तथा शैवों के संत-चरित-साहित्य की परिपुष्ट परंपरा में विद्यमान है।
२६-उत्तर अर्काट जिले के सेदुरम्पत्तु में भी प्रस्तर-शय्याएँ हैं, जिनपर प्रक्षिप्त शिला वितान की भाँति छायी हुई है। इनमें से एक शय्या पर उत्कीर्ण एक त्रिच्छत्र से इस स्थान का जैन संबंध निस्संदेह रूप से सिद्ध होता है ।
| एम. ई. पार०, 1927-28. भाग 2. अनुच्छेद 1. 2 एम० ई० आर०, 1939-40 से 1942-43. भाग 2. अनुच्छेद 158 .
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