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वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 300 से 600 ई०
[ भाग 3
ब्राह्मण पंथों को राज्याश्रय का मिलना एक और कारण बताया जा सकता है, किन्तु केवल यही एकमात्र कारण नहीं हो सकता । स्कंदगुप्त के कहाऊँ अभिलेख (४६०-६१ ई०) से यह प्रमाण मिलता है कि जैन धर्म का अस्तित्व अन्य स्थानों में था, क्योंकि गुप्त शासक सहिष्णु थे ।
कारण जो भी रहा हो, यह एक सत्य है कि गुप्त काल में मथुरा में जैनों ने अपनी लोकप्रियता खो दी थी। फिर भी जैनों का मथुरा में अपना संगठन था और जैन धर्म को गृहस्थों का किसी न किसी रूप में समर्थन मिलता रहा । बड़े और सामान्य आकार की जैन प्रतिमाएँ बनती रहीं और मंदिरों में प्रतिष्ठित भी की जाती रहीं, किन्तु चरमोत्कर्ष का समय अब नहीं रह गया था ।
मथुरा से प्राप्त सामग्री निम्नलिखित मूर्तियों के रूप में है :
(१) ध्यानस्थ मुद्रा में आसीन तीर्थकरों की पच्चीस मूर्तियाँ (चार के चित्र यहाँ दिये गये हैं, चित्र ४३-४६) ।
प्रयागपटों और सरस्वती, बलभद्र, धरणेन्द्र जैसे जैन देवताओं या अन्य शासन- देवों या शासनदेवियों की पृथक् मूर्तियों का तो स्पष्ट रूप से प्रभाव है । यहाँ तक कि सर्वतोभद्र मूर्तियाँ तो लगभग न मिलने के समान हैं । मथुरा संग्रहालय में जो एक मूर्ति है भी (पु० सं० म० : बी-७५ ) वह परवर्ती संक्रमणकाल अर्थात् लगभग सातवीं / ग्राठवीं शताब्दी की है ।
अब जो सामग्री उपलब्ध है, उसपर विस्तार से विचार किया जायेगा ।
1
(२) खड्गासन मुद्रा में तीर्थकरों की छह मूर्तियाँ (दो के चित्र यहाँ दिये गये हैं, चित्र ४७ ) । (३) तीर्थंकर मूर्तियों के तेईस वियुक्त सिर (तीन के चित्र वहां दिये गये हैं, चित्र ४८ ५० ) । (४) कुछ खंडित कृतियाँ" ।
रा० सं० न० जे 36, जे 52 वे 89, जे 104 (चित्र 43), जे-118 ( चित्र 44 ), जे 119, जे 122, - जे जे 139 - 584 (?), पो-181 (चित्र 45 ) : पु० सं०म० बी-1, बी-6, बी-1 (चित्र 46 ), ; : 7 बी-11, बी-28, बी-31, बी-33, बी-74, बी-75, 15959, 15983, 181388, 543769, 57:4338.
57 4382.
2
रा० सं० ० जे-83 में 86, जे 100 -121 (चित्र 47 ) ० सं०म० बी 33,12268 ( चित्र 47 ख ) .
3
रा० [सं० ० जे 59 (केवल सिर), जे 164 (चित्र 50 ) जे 168, जे 175, जे 176, जे 200, जे 207. जे-222; पु० सं० म० ए-35, बी-44 ( चित्र 48 ), बी-45, बी-46, बी 48, बी-49, बी-50, बी-53, at-59, at-60, at-61, 11134, 15 565, 15 566, 29 1941, 33 2348 (f 49), 67 189.
4
रा० सं० ल० : जे-2; पु० सं० म० : 14.488, 15.624.
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