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अध्याय 2 ]
पृष्ठभूमि और परंपरा १६. (दि०) मल्लिनाथ या (श्वे०) मल्ली'; नारी, नीला, कलश, कुबेर, (दि०) अपराजिता या (श्वे०) धरणप्रिया, मिथिला, सम्मेदशिखर ।
२०. मुनिसुव्रत; श्याम, कच्छप, वरुण, (दि०) बहुरूपिणी या (श्वे०) नरदत्ता, राजगृह, सम्मेदशिखर ।
२१. नमिनाथ ; स्वर्णिम, नीलकमल, भृकुटि, (दि०) चामुण्डी या (श्वे०) गान्धारी, मिथिला, सम्मेदशिखर।
२२. अरिष्टनेमि या नेमिनाथ; श्याम, शंख, (दि०) सर्वाह्ण या (श्वे०) गोमेध, (दि.) कुष्माण्डिनी या (श्वे०) अम्बिका, शौरियपुर, गिरिनगर ।
२३. पार्श्वनाथ; श्याम, सर्प, धरणेन्द्र, पद्मावती, वाराणसी, सम्मेदशिखर । २४. वर्धमान महावीर; स्वणिम, सिंह, मातंग, सिद्धायिका, कुण्डग्राम, पावापुरी।
चौबीस तीर्थंकरों में अंतिम और नातपुत्त (नातिपुत्त) के नाम से भी प्रसिद्ध वर्धमान महावीर के पूर्ववर्ती पार्श्वनाथ थे जिनका निर्वाण महावीर के निर्वाण अर्थात् ५२७ ई० पू० से दो सौ पचास वर्ष पूर्व, सौ वर्ष की परिपक्व अवस्था में हुआ माना जाता है । वास्तव में, महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ के अनुयायी थे (महावीरस्स अम्मॉपियरो पासावच्छिज्जा--आचारांगसूत्र) और कल्पसूत्र में उल्लेख है कि महावीर ने ठीक उसी मार्ग का अनुसरण किया जिसका उपदेश उनके पूर्ववर्ती तीर्थकरों ने किया था। प्राचीनतम जैन आगमों में उत्तराध्ययन-सूत्र के तेईसवें अध्याय में उल्लिखित पार्श्वनाथ के अनुयायी केशी और महावीर के अनुयायी गौतम के संवाद से पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता प्रायः पूर्णरूप से सिद्ध हो जाती है। चातुर्याम धर्म (चाउज्जाम धम्म) और महावीर के पंच महाव्रत (पंच सिक्खियो) की मौलिक एकता पर भी बल दिया गया है। इस प्रकार, तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के ई०पू०८७७ से ७७७ ई० पू० तक के जीवनकाल के विषय में हमें निश्चित आधार मिल जाते हैं। पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में, और सब तीर्थंकरों की भाँति, क्षत्रिय राजपरिवार में हुअा माना जाता है। पार्श्वनाथ के जीवन वृत्तान्त से हमें ज्ञात होता है कि उन्होंने अहिच्छत्त (बरेली जिले में अहिच्छत्र), आमलकप्प (वैशाली जिले में वैशाली के निकट), हत्थिणाउर (मेरठ जिले में हस्तिनापूर), कम्पिल्लपुर (फर्रुखाबाद जिले में कम्पिल), कोसंबी (इलाहाबाद के निकट कौशाम्बी), रायगिह ( नालंदा जिले में राजगिर), सागेय और सावत्थी (गोंडा-बहराइच जिलों में सहेठ-महेठ) नगरों की यात्रा की थी। पार्श्वनाथ का निर्वाण सम्मेदशिखर (हजारीबाग जिले में स्थित पारसनाथ पहाड़ी) पर हुआ । जहाँ व्यवस्थित रूप से पुरातात्त्विक उत्खनन हुआ है उन वाराणसी (राजघाट), अहिच्छत्र, हस्तिनापुर और कौशाम्बी नगरों का इतिहास, वहाँ से प्राप्त मृत्तिका-भाण्डों तथा भूरे रंग के चित्रित मिट्टी के बड़े बरतनों के आधार पर छठी शती ई० पू० से कुछ शती पूर्व तक निश्चित रूप
1 श्वेतांबर परंपरा के अनुसार मल्ली को नारी तीर्थकर माना गया है. दिगंबर इसे अस्वीकार करते हैं, क्योंकि
उनके अनुसार कोई भी नारी मुक्ति के लिए सक्षम नहीं है, वे इस तीर्थंकर का नाम मल्लिनाथ मानते हैं.
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