________________
अध्याय 61
मथुरा
माधर्य संपन्न एक विसी लता अत्यंत अलंकृत रूप से उत्कीर्ण है; इसका लहरदार तना उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्ण कमलों, कलियों और पत्तियों को प्राच्छादित किये हुए है। विसी लता के पार्श्व में दोनों ओर (तोरण-स्तंभों की उर्ध्वाधर सीध में) एक-एक वर्गाकार फलक बना हुआ है जिसमें एक वामन व्यक्ति इस प्रकार बैठा है जैसे वह ऊपरी ढाँचे को थामे रखने का प्रयास कर रहा हो। एक विलक्षण बात यह है कि वामन की टाँगें सर्प के समान हैं और उनके अंत में एक टेढ़ी-मेढ़ी पूंछ है। इस प्रकार की प्राकृतियाँ जो अनेक उत्कीर्ण शिलापट्रों पर भी पायी जाती हैं और जिनमें कनिष्कपूर्व युग के आयाग-पट भी सम्मिलित हैं, कदाचित् यूनानी संस्कृति के किसी कला-प्रतीक का रूपांतर हैं । इन वर्गाकार फलकों के पश्चात् दो प्रक्षिप्त सिरे हैं (वाम सिरा लापता है), जिनपर मत्स्य-पुच्छवाला एक मकर उत्कीर्ण है जिसके मुख में एक मत्स्य है। अंतिम छोर अर्द्धवृत्ताकार है । इस प्रकार के एक अन्य खण्डित सरदल (रा० सं० ल०, जे-५४७) में दाहिनी ओर के सिरे पर एक गरुड़ उत्कीर्ण है जो अपनी चोंच में एक तीन फणवाले ऐसे सर्प को पकड़े हुए है जिसने स्वयं को गरुड़ की ग्रीवा के चारों ओर लपेट लिया है (चित्र हख; ख) । इससे आगे एक अंशतः सुरक्षित फलक है जिसमें एक बैलगाड़ी और बिना जुते हुए बैल अंकित हैं।
कंकाली-टीले में तोरणों में प्रयुक्त दो भिन्न प्रकार के टोड़े मिले हैं। एक प्रकार के टोड़ों में शालभंजिकाओं का अंकन है। तोरण-शालभंजिकाओं के कई ऐसे नमूने हैं जो तोरण-स्तंभों से निकलकर तोरण के निचले सरदल के दो सिरों को सहारा दिये रहते थे। इनमें से दो (रा० सं० ल० जे-५६५ क और ख; चित्र १० क और ख), जो एक ही तोरण के हैं, सुरक्षित हैं । दोनों टोड़ों के आधार में एक चूल है जो स्तंभ के कोटर में बैठा दी जाती थी। टोड़ों के घेरे में बनी दोनों नारीमूर्तियाँ पुरोभाग की ओर पूर्णतः तथा पृष्ठभाग की ओर अंशतः सज्जित हैं। यद्यपि इनमें कतिपय विशेषताएं (उदाहरणार्थ-केशविन्यास, आभूषण, चरणों के नीचे की मूर्तियाँ) भर्हत की वेदिकामूर्तियों के समान हैं, परन्तु ये अपने अधिक उत्तम प्रतिरूपण के कारण उनकी अपेक्षा उत्कृष्ट हैं और सांची की तोरण-शालभंजिकाओं की कुछ पूर्ववर्ती प्रतीत होती हैं। एक पुष्पित वृक्ष (संभवतया अशोक) के तने के सहारे झुकी हुई ये दोनों नारियाँ उस वृक्ष की शाखाओं को पकड़े हुए हैं। दाहिने टोड़े पर उत्कीर्ण नारी एक झुके हुए मानव की मूर्ति पर खड़ी है (चित्र १० क), जब कि बायें टोड़े पर अंकित नारी एक हाथी के सिर पर खड़ी है (चित्र १० ख) । इस प्रकार के अन्य सभी टोड़े खण्डित हैं। उनमें से दो टोड़ों में नारी-मूर्ति मत्स्य-पुच्छवाले एक मकर पर खड़ी हुई है। एक अन्य प्रकार के टोड़े में सिंह का निरूपण है, जैसा कि एक आयाग-पट में शिल्पांकित है (पू० सं० म०, क्यू-२; चित्र १)। इस प्रकार के टोड़े की पूर्ण प्रतिकृति (चित्र ११ क) रा० सं० ल०, जे५६४ है।
तोरण-स्तंभों में कुषाणयुगीन स्तंभों के शिल्पांकन विशेष रूप से उत्कृष्ट हैं। इनमें से एक (चित्र ११ ख) अभिलेखांकित है जिसमें श्राविका बलहस्तिनी द्वारा एक तोरण के समर्पण का उल्लेख
1 स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 36 तथा ग.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org