________________
अध्याय 7 ]
पूर्व भारत
इस ओर कोई अन्य भित्ति नहीं थी । कटावदार किनारोंवाली इस कक्ष की पार्श्व भित्तियों के सिरे वृत्ताकार भित्ति से इतने सुसंबद्ध रूप से जुड़ते थे कि दोनों की वाह्य योजना अर्धवृत्ताकार हो जाती थी । इसकी अंतरंग संरचना बराबर-पहाड़ियों (बिहार) की सुदामा गुफा और कोण्डिवटे (महाराष्ट्र) के चैत्यगृह से मिलती-जुलती है। इन दोनों की भित्तियों की उपयुक्त जुड़ाई के अभाव में लेखक ने पहले यह समझा था कि आयताकार कक्ष, जिसकी भित्तियाँ वृत्ताकार भित्ति के समीप हैं, वृत्ताकार भित्ति के उपरांत निर्मित किया गया है । जो भी हो, भुवनेश्वर के अनेक मंदिरों के सादृश्य के आधार पर, जहाँ गर्भगृह के अग्रभाग की भित्ति के समीप द्वारमण्डप की भित्तियाँ बिना उपयुक्त जुड़ाई के बनी हैं, अब यह स्वीकार किया जाता है कि कक्ष और वृत्ताकार भित्ति दोनों ही समकालीन हैं। आयताकार कक्ष की तीन भित्तियों के मध्य में एक खुला स्थान है, जो संभवतः द्वारों के लिए रखा गया होगा।
क्योंकि वृत्ताकार भित्ति खुदाई करने पर एक रद्द (स्तर) तक ही सीमित हो गयी है, उसकी ठीक-ठीक रचना और उपयोग का निश्चय कर पाना कठिन है। जो भी हो, इस पूरे भवन-समूह की संरचना बौद्ध चैत्यगृहों, उनके अर्धवृत्तों, उनकी मध्य तथा पार्श्ववीथियों से इतनी मिलती-जुलती है कि यह बहुत संभव है कि वृत्ताकार भित्ति अर्धवृत्ताकार रचना के गर्भगृह के रूप में उपयोग में आती थी और आयताकार कक्ष सभामण्डप या मध्यवीथि का काम देता था। इस समता के अनुसार यह कहा जा सकता है कि उनकी बाहरी भित्तियों और बाहरी वृत्ताकार भित्ति के अंतरंग सिरों के बीच के स्थान का उपयोग प्रदक्षिणापथ की पार्श्ववीथियों के रूप में होता था ।
अर्धवृत्ताकार भवन की नींव के पास कंकरीले भूखण्डों के किनारों पर निर्मित तथा किंचित पीछे की ओर झुकी हुई दो अर्धवृत्ताकार आधार-भित्तियों का निर्माण संभवतः आयताकार कक्ष की दो पाव भित्तियों के नीचे प्रस्तर-खण्डों द्वारा भरे गये गहरे भराव की सुरक्षा के लिए किया गया था ताकि वे ढह न जायें।
यह असंभव नहीं है कि भवन के चारों ओर बाड़ लगी हुई थी क्योंकि हाथीगुम्फा के सामने चबूतरे के पास पाये गये मलबे के बीच में बलुए पत्थर के कुछ उत्कीणित वेदिकास्तंभ मिले हैं।
अर्धवृत्ताकार भवन की बाहरी रूपरेखा का मोटा अनुमान रानीगुम्फा के धरातल के मुखभाग पर किये गये शिल्पांकनों (चित्र २१) के उत्तरी भाग से किया जा सकता है।
अर्धवृत्ताकार भवन की बाहरी भित्ति के चारों ओर तलशिला में लगभग नियमित अंतर पर अनेक छिद्र थे। स्पष्टतः इनमें स्तंभ लगाये जाते थे। यह ज्ञात नहीं है कि ये स्तंभ बाड़ में प्रयुक्त होने के कारण थे अथवा इतने लंबे थे कि किसी सरदल को (जिसके शीर्षभाग से परनाला निकला है) आधार दे सकें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org