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अध्याय 8 ]
पश्चिम भारत उपलब्ध नहीं है।। अतएव इस शिलालेख के जैनों से संबंधित होने की बात अब नहीं मानी जाती।
- चौथी-पाँचवीं शती ई० के एक प्राचीन ग्रंथ वसुदेव-हिण्डी में उज्जैन में एक जीवन्तस्वामी (महावीर के जीवनकाल में निर्मित प्रतिमा) का उल्लेख मिलता है ।बृहत्कल्पभाष्य (लगभग छठी शती ई०) में भी इसका उल्लेख है और इस ग्रंथ की टीका में उज्जैन में इस प्रतिमा की रथयात्रा के समय आर्य सूहस्ति द्वारा सम्प्रति को जैन धर्म में दीक्षित किये जाने का पूर्ण विवरण दिया गया है।
जिनदास कृत आवश्यक-णि (सातवीं शती) में सिन्धु सौवीर में वीतभयपत्तन के उद्दायण की रानी द्वारा महावीर की चंदनकाष्ठ-निर्मित जीवन्तस्वामी-प्रतिमा की पूजा करने का विवरण मिलता है । कालांतर में इस प्रतिमा को अवंति का प्रद्यौत उठा ले गया और अंत में विदिशा में इसका पूजन होता रहा । किन्तु मौर्य और शुंगकाल में अवंति-मालवा प्रदेश के पश्चिम भागों में जिन-बिम्बों की पूजा का अन्य कोई प्रमाण हमें नहीं मिलता।
इस प्रकार चंदनकाष्ठ से निर्मित महावीर की प्रथम मूर्ति की पूजा वीतभयपत्तन के राजा उद्दायण की रानी द्वारा की गयी। अवन्ति का प्रद्यौत इस मूर्ति को उठा ले गया और कालांतर में यह पूजा के लिए विदिशा में प्रतिष्ठित की गयी। किन्तु प्रद्यौत मूल प्रतिमा तभी ले गया जब उसने वीतभयपत्तन में उसकी एक अनुकृति स्थापित कर दी। महान् भाष्यकार मुनि हेमचन्द्राचार्य ने इन मूर्तियों का आगे का मनोरंजक विवरण अपनी कृति त्रिषष्टि-शलाका-पुरुष-चरित में दिया
1 सरकार (डी सी). बरली फेगमेण्टरी स्टोन इंस्क्रिप्शंस. जर्नल प्रॉफ द बिहार रिसर्च सोसायटी. 37; 1951;
34-38. 2 बसुदेव-हिण्डी. संपा : चतुरविजय तथा पुण्यविजय. खण्ड 1, भाग 1. 1930. पृ 61. भावनगर./जिनदास.
आवश्यक-चूणि (खण्ड 3. 1923. रतलाम. पृ 157) में भी उज्जैन की इस मूर्ति का उल्लेख है. जीवन्तस्वामी प्रतिमा के लिए द्रष्टव्य : शाह (यू पी). ए युनीक जैन इमेज ऑफ 'जीवन्त स्वामी'. जर्नल प्रॉफ द प्रोरियण्टल इंस्टीट्यूट. 1; 1951-52; 72-79 और 'साइडलाइट्स प्रौन द लाइफ टाइम सैण्डलवुड इमेज ऑफ
महावीर', पूर्वोक्त, पृ 358-368. 3 बृहत्कल्पभाष्य. 3. गाथा 3277.917 तथा परवर्ती. / कल्प-चूणि (अब भी पाण्डुलिपि रूप में; बहत्कल्पभाष्य
की टीका से प्राचीनतर) में भी इसका वर्णन है. द्रष्टव्य : कल्याणविजय. वीर निर्वाण संवत् और जैन कालगणना. नागरी प्रचारिणी पत्रिका. 10; 1930; उद्धरण. आवश्यक-चूरिण. खण्ड 1. गाथा 774. पृ 397-401. (आवश्यक नियुक्ति की टीका)./ और द्रष्टव्य : हरिभद्र. प्रावश्यक-वृत्ति. खण्ड 1. भाग 2. 1916. सूरत. पृ 296-300. / आवश्यक-नियुक्ति. खण्ड 1. Y 156 तथा परवर्ती. / जैन (जगदीश चन्द्र). लाइफ एज डिपिक्टर इन द जैन कैनन्स. 1947. बम्बई. पृ 349. / शाह. पूर्वोक्त.
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