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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पू० से 300 ई.
[ भाग 2 कि अशोक के शासनकाल में उत्तर बंगाल में पुण्डवर्धननगर जैन धर्म और आजीविक मत का गढ़ था। इस आख्यान के अनुसार, अशोक को जब पता लगा कि पुण्डवर्धननगर (आधुनिक महास्थानगढ़, जिला बोगरा, बांग्लादेश) के एक निग्रंथ उपासक ने एक ऐसा चित्र बनाया है जिसमें बुद्ध को निग्रंथ के चरणों पर पड़ा दिखाया है, तो उसने पुण्डवर्धननगर के अठारह हजार आजीविकों की हत्या करा दी। कल्पसूत्र के नूतन संस्करण से पहले बंगाल के अधिकांश भाग में जैन धर्म स्थापित हो चुका था। यह बात इस ग्रंथ में वर्णित ताम्रलिप्तिका (प्राचीन ताम्रलिप्ति, आधुनिक तमलुक, जिला मिदनापुर), कोटिवर्षीया (प्राचीन कोटिवर्ष के नाम पर संभवत: पश्चिम दीनाजपुर का बानगढ़)
और चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन भद्रबाहु के शिष्य गोदास द्वारा स्थापित एक गण की पुण्डवर्धनीया शाखा के उल्लेखों से सिद्ध होती है। यद्यपि अपने वर्तमान स्वरूप में कल्पसूत्र के पाठ का यह नतन संस्करण ईसा की पाँचवी-छठी शती से पूर्व का नहीं है, तथापि इसमें प्रचर मात्रा में प्राचीन परंपराओं का उल्लेख है। जैसा कि मथुरा के पहली शती ईसवी और परवर्ती शिलालेखों से सिद्ध होता है, इन शिलालेखों में कुल और शाखाओं सहित अनेक गणों के नामों का उल्लेख है जिनका विवरण कल्पसूत्र में मिलता है। मथुरा की एक जैन मूर्ति के पादपीठ पर प्राप्त ६२वें वर्ष (१४० ई०) के शिलालेख में शरक नाम से एक जैन भिक्षु का उल्लेख है जिसकी व्याख्या रार' का निवासी की गयी है और 'रार' की समता राढ (पश्चिम बंगाल) से की गयी है।
दुर्भाग्य से इस काल का एक भी जैन पुरावशेष बंगाल में नहीं मिला है। जैन संबंधी जो सबसे प्राचीन अभिलेख मिला है, वह है गुप्त-संवत् के १५६वें वर्ष का पहाड़पुर (जिला राजशाही, बांग्ला देश) से प्राप्त ताम्रपत्र । इस ताम्रपत्र में यह उल्लेख है कि बट-गोहाली के विहार में चंदन, धूप, पुष्प, दीपकों आदि से अहंतों की विधिवत् पूजा के हेतु एक ब्राह्मण दम्पति द्वारा भूमि का दान दिया गया था। कहा जाता है कि इस विहार के अधिष्ठाता काशी के पंच-स्तूप-निकाय से संबंधित निग्रंथ श्रमणाचार्य गुहनन्दि के शिष्य और शिष्यों के शिष्य थे । अतः यह बहुत संभव है कि उक्त विहार चतुर्थ शती ई० में पहाड़पुर में विद्यमान रहा हो । जैन धर्म के पूर्वोक्त केन्द्र का अस्तित्व इससे पहले भी यहाँ था या नहीं, यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है।
उड़ीसा
बहुत प्राचीन समय से कलिंग (जिसमें उड़ीसा का अधिकांश भाग सम्मिलित था) जैन धर्म का गढ़ था। कहा जाता है कि महावीर ने इस प्रदेश का भ्रमण किया था। ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी में
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