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प्रास्ताविक
[ भाग 1
स्थान को ही चुना।'' उन्होंने जिन अन्य ललित कलाओं का उत्साहपूर्वक सृजन किया उनमें सुलेखन, अलंकरण, लघुचित्र और भित्तिचित्र, संगीत और नृत्य हैं। उन्होंने सैद्धांतिक पक्ष का भी ध्यान रखा और कला, स्थापत्य, संगीत एवं छंदशास्त्र पर मूल्यवान् ग्रंथों की रचना की।
कहने की आवश्यकता नहीं कि जैन कला और स्थापत्य में जैन धर्म और जैन संस्कृति के सैद्धांतिक और भावनात्मक आदर्श अत्यधिक प्रतिफलित हए हैं, जैसाकि होना भी चाहिए था। 2
ज्योति प्रसाद जैन
1 लांगहर्स्ट (ए एच ). हम्पी रुइन्स. 1917. मद्रास. पृ 99. 2 तुलनीय : जैन (ज्योति प्रसाद). जैन सोर्सेज प्रॉफ व हिस्ट्री प्रॉफ ऐश्वेट इण्डिया. 1964. दिल्ली. अध्याय 10./
जैन (ज्योति प्रसाद).रिलीजन एण्ड कल्चर प्रॉफ द मैन्स (मुद्रण में ). अध्याय 8; और प्रस्तुत ग्रंथ के विभिन्न अध्याय.
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