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अध्याय 6 ]
मथुरा
नीची है, जिसके परिणामस्वरूप तोरण तक पहुँचने के लिए केवल चार सीढ़ियाँ हैं, जहाँ से पीठिका के ऊपर वेदिकायुक्त तलवेदी पर पहुँचा जा सकता है । इस तलवेदी पर दो स्तंभ हैं, जैसे कि पूर्वोक्त शिल्पांकन में थे । मुख्य स्तूप के ऊँचे बेलनाकार शिखर की केवल निचली तलवेदी ही सुरक्षित है । प्रचुरता से उत्कीर्ण तोरण के वक्राकार सरदलों के सिरे मुड़ी हुई पूँछोंवाले मकरों के सदृश हैं । सरदलों के बीच वर्गाकार शिलाखण्डों पर ( जो तोरण के आयताकार स्तंभों की सीध में हैं ) मधुमालती लता और श्रीवत्स जैसे कला-प्रतीक अंकित हैं। सरदलों के केन्द्रीय भाग को जोड़नेवाले दो शिल्पांकित वेदिका स्तंभ हैं और इन स्तंभों तथा शिलाखण्डों के बीच के स्थान में जालियाँ बनी हुई हैं । इस तोरण के शीर्षस्थ तत्त्व वैसे ही हैं जैसे कि पु० सं० म०, क्यू-२ संख्यावाले तोरण में हैं । निचले सरदल के केन्द्रीय भाग से माला सहित एक कमल-गुच्छ लटक रहा है । शिलापट्ट पर उत्कीर्ण लेख में कहा गया है कि यह प्रयाग-पट एक नर्तक की पत्नी शिवयशा द्वारा अर्हतों की पूजा के लिए स्थापित किया गया था । पुरालिपिशास्त्रीय तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह शिलालेख कनिष्क - प्रथम से तुरन्त पहले के युग का माना गया है ।
स्तूपों की अन्य अनुकृतियाँ भी हैं। इनमें से एक इस समय नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे हुए तोरण-शीर्ष ( चित्र १२ ) पर अंकित है । यद्यपि विभिन्न विषय-वस्तुनों के एक साथ एकत्रित हो जाने के कारण, इसमें लघु रूप में शिल्पांकन किया गया है, किन्तु फिर भी इसमें मूल स्तूप की सभी आवश्यक विशेषताएं विद्यमान हैं- जैसे कि दो वेदिका - युक्त तलवेदियों में एक ऊँचा बेलनाकार शिखर और एक नीचा अर्द्धवृत्ताकार शिखर है; शिखर पर एक वर्गाकार वेदिका और एक छतरी है। एक अन्य तोरण - शीर्ष ( रा०सं०ल०, बी २०७ ) 2 पर भी एक लघु स्तूप का अंकन किया गया है । इसके आधार में एक वेदिका निर्मित है ।
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एक अन्य लघु चित्रण एक शिला पट्ट पर है, जो संभवतया एक प्रयाग-पट ( रा० सं० ल०, जे-६२३) है। इसपर वर्ष ६६ का एक शिलालेख है जो अनुमानतः शक संवत् का है । इसमें स्तूप का अंकन ऊपरी भाग में है ( चित्र पार्श्व में दोनों ओर पद्मासन मुद्रा में दो-दो तीर्थंकरमूर्तियाँ हैं, जब कि मुख्य फलक पर कायोत्सर्ग मुद्रा में कण या कण्ह नामक श्रमण की मूर्ति, अभय मुद्रा में खड़ी एक महिला की मूर्ति और तीन भक्तों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । पूर्वोक्त पाँच अनुकृतियों की विशेषताओं के विपरीत, इस स्तूप के ढोलाकार शिखर की एक ही तलवेदी है । एक विशेषता यह भी है कि भूमितल पर और ढोलाकार शिखर के ऊपर जो वेदिकाएँ हैं उन दोनों में एक-एक तोरण है । अर्धवृत्ताकार शिखर के ऊपर एक वर्गाकार वेदिका है, जिसके केन्द्र में छत्र की कम ऊंची तथा मोटी यष्टि है ।
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ग्राफिया इण्डिका. 2; 200 / ल्यूडर्स, पूर्वोक्त, क्रमांक 100.
2 बुलेटिन श्रॉफ म्यूजियम्स एण्ड प्राक् यॉलॉजी इन यू. पी. 9; 1972; 48-49, रेखाचित्र 4.
3 एपोग्राफिया इण्डिका 10; 1909-10 117.
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