________________
प्रास्ताविक
[ भाग 1
हई। दक्षिण भारत में जैनधर्म संबंधी अपने विशिष्ट ज्ञान के कारण उन्होंने अत्यन्त अल्प समय में प्रस्तुत ग्रंथ के लिए कुछ अध्याय दक्षिणापथ और दक्षिण भारत संबंधी लिख दिये जो कि उनके नाम से छपे हैं। अध्याय-संपादन और इन अध्यायों के लिए उपयुक्त चित्र ढूंढ़ निकालने में सहयोग देने के लिए वे न केवल तत्परता से तैयार हो गयीं अपितु उन्होंने इसमें मेरी सहायता भी की। मैं उनका आभारी हूँ। उक्त केन्द्र के असोशियेट-प्रोफेसर डॉ० बी० डी० चट्टोपाध्याय ने प्रफ-संशोधन में सहर्ष मेरा हाथ बँटाया। उन्हें भी मेरा धन्यवाद ।
इस प्रस्तावना के अंत में मैं यह नहीं भूलूंगा कि मुझे भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक श्री शान्तिप्रसाद जैन, और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रमा जैन, अध्यक्षा, ज्ञानपीठ न्यासधारी मण्डल, को विशेष धन्यवाद देना है। यद्यपि उनसे मेरा व्यक्तिगत संपर्क कम ही रहा है, तो भी मैंने सदा ही यह अनुभव किया है कि इस योजना के मार्ग-दर्शक और प्रेरणा-स्रोत वे ही हैं। इन्हीं के कारण यह प्रकाशन संभव हो सका है।
नवम्बर 1, 1974
प्रमलानन्द घोष
C. 2
DUOC TU
SNONOVIEVE
NOVOROVNOWNSVIVOMOVSVMMOMO
14
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org