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जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ में छह दुष्ट युवकों की ललितागोष्ठी भी एक थी। एक दिन वह छह दुष्ट व्यक्तियों की टोली घूमती हूई अर्जुन माली के पुष्पाराम में पहुँच गई । वहाँ उन्होंने अर्जुन को अपनी पत्नी बन्धुमतो के साथ फूल तोड़ते हुए देखा, तो बन्धुमती की सौन्दर्य - छटा पर वे पागल हो उठे। दुराचारी सुन्दर स्त्री को सामने देख कर अंधा हो जाता है। वह स्त्री के सौन्दर्य को किसी सुन्दर व मधुर फल की तरह निगल जाना चाहता है। वे यक्ष मंदर में इधर • उधर चुपचाप घात लगाकर छिप गये । ज्यों ही अर्जुन माली यक्ष की पूजा के लिए मंदिर में आया और प्रणाम करने के लिए नीचे झुका कि बस, तुरन्त उन्होंने मिलकर अर्जुन को रस्सियों से बाँध दिया और फिर उसी के सामने उसकी पत्नी के साथ दुराचार करने लगे।
अर्जुन का खून खौल उठा। भुजाएँ फड़कने लगीं । पर, वह गाढ बन्धन में इस प्रकार बंधा था कि मिट्टी के ढेले की तरह पड़ा अपनी आँखों से यह कुकृत्य देखता रहा, कुछ कर न सका। वह मनहीमन क्रुद्ध सर्प की तरह मसमसाने लगा। यक्ष की श्रद्धा के प्रति उनका अन्तर्ह दय विद्रोह कर रठा"यक्ष ! तेरी पूजा करते करते मेरी पीढ़ियाँ बीत गई ! मैंने अचल श्रद्धा के साथ आज तक तेरी पूजा की । पर मुझे पता नहीं था। कि तू सिर्फ एक पत्थर की मूर्ति के सिवा और कुछ भी नहीं है। यदि तुझ में कुछ भी शक्ति है, चमत्कार है, और तु वास्तव में ही यक्ष है, तो आज मेरा भक्त अपनी आँखों के
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