Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 16
________________ अमृत जीता, विष हारा चरणों में। मैं भी वहीं जा रहा हूँ। वे करुणा के देवता,हमें कल्याण का मार्ग बताएँगे।" Pheo अर्जुन की आँखों में आशा की आभा चमक उठी । वह मुदर्शन के साथ भगवान महावीर के दर्शन करने चल पड़ा। लोगों ने देखा-सुदर्शन, अर्जुन जैसे नृशंस हत्यारे को साथ लिए, भगवान् महावीर की धर्म-सभा की ओर जा रहा है। पापी धर्मी बन जाता है, तब भी साधारण लोग उसे आशंका से देखते हैं। पहले तो लोगों के मन में अनेक आशंकाएँ उठीं, उन्हें यह यक्ष का छलावा लगा अतः बहुत देर तक कुतूहल बश देखते रहे। पर, देखा कि अजुन आज बहुत शान्त है, उसकी गर्वोद्धृत ग्रीवा विनय से आज नीचे झुकी हुई है, उसके दोनों हाथ प्रणाम-मुद्रा में जुड़े हुए हैं । बस, फिर क्या था ? नगर के सब द्वार खुल गए। राजगृह के सहस्त्रों नर-नारी अब निर्भय होकर प्रभु की धर्म देशना सुनने को एकत्र हो गए। प्रभु का उपदेश हुआ। अहिंसा और प्रेम की वह धारा बही कि अर्जुन माली का हृदय आप्लावित हो उठा। उसने प्रभु के समक्ष आत्म • निंदा की, और अहिंसा की सर्वव्रती साधना के लिए प्रबजित होने की प्रार्थना की। भगवान् महावीर ने अर्जुन का बदला हुआ हृदय देखा, पहले के दूषित जीवन के प्रति ग्लानि देखी और देखा कि क्षमा और अहिंसा का सुप्त देवता उसके भीतर जग रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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