Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ ७२ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ दो तोला मांस के बदले, वे लोग लाखों - करोड़ों स्वर्ण-मुद्रा देते गए, अपने प्राणों की भिक्षा मांगते गये। पर, कोई भी माँ का वह लाल नहीं मिला, जो अपने हृदय का मांस देकर सम्राट् के प्राण बचाने को प्रस्तुत हो । प्रातःकाल कार्य से निवृत्त होकर महामंत्री अभयकुमार प्रश्न का उत्तर देने हँसते - मुस्कराते राज-सभा में उपस्थित हुए। रात-ही-रात समग्र नगर में चर्चा फैल गई थी कि कल प्रातः महामंत्री अपना उत्तर प्रस्तुत करेंगे, और बस, इसीलिए आज राजसभा में जन-समूह समा ही नहीं रहा था। __महाराज की आज्ञा पाकर अभय ने अपने प्रमुख सेवक को संकेत किया। कुछ ही देर में खन-खनाती करोड़ों स्वर्णमुद्रायों का ढेर लग गया गजसभा में । मगधेश आश्चर्य मे देख रहे थे। कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्या रहस्य है। अभयकुमार सम्राट के सम्मुख करबद्ध खड़ा हुआ। महाराज का अभिवादन करके सामतों के शंकाकुल निष्प्रभ चेहरों पर एक दृष्टि डाली और निवेदन किया---''महाराज, आपने पूछा था कि सबसे सस्ती चीज क्या है। हमारे वीर सामन्तों ने उत्तर दिया था कि 'मांस !' मैं उन सब सामन्तों के द्वार पर भटक आया, पर इन करोड़ों स्वर्ण - मुद्राओं के वदले दो तोले मांस कहीं नहीं मिल सका । फिर मांस सस्ता कैसे ?' अभय एक क्षण रुका सामन्तों के चेहरे म्लान हुए जा रहे थे। रात्रि की घटना बताते हुए अभय ने कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90