Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 80
________________ मांस का मूल्य मांग लो। अधिकार या पद चाहिए, तो वह भी मिलेगा। जो चाहोगे वही मिलेगा, सिर्फ दो तोले मांस चाहिए ! महाराज के जीवन - मरण का प्रश्न है। तुम्हारी स्वामिभनि कसौटी पर है आज ।" अभयकुमार एक ही साँस में यह सब कह गया, और फिर रुक कर सामन्त के चेहरे की ओर देखने लगा। सामन्त का चेहरा फक हो गया । “हृदय का मांस ? जब प्राण ही नहीं रहेंगे, तो यह धन, अधिकार किस काम आयेगा ? प्राणों के साथ धन का सौदा ?" सामन्त ने अभय के चरणों में सिर रख दिया, और गिड़गिड़ाते हुए कहा-- "महामंत्री ! कृपा करके मुझे जीवन-दान दे दीजिए। आप मेरी ओर से ये लाख स्वर्ण-मुद्रा ले जाइए और किसी ऐसे व्यक्ति के हृदय का मांस, जो लाख स्वर्ण - मुद्रा लेकर देता हो, कृपया ले लीजिए।" अभय ने गहरी दृष्टि से सामन्त के कातर नयनों पर झलकती जिजीविषा को देखा । जीवन कितना प्रिय होता है ? मांस कितना महँगा है ? क्यों अब कुछ समझे ?-अभय होठों में ही मुस्करा उठा । सामन्त की बहुत अधिक आजिजी के बाद अभयकुमार ने लाख स्वर्ण - मुद्राएँ अपने महल में भिजवा दी और वह आगे चल पड़ा । सभा में जिन - जिन सामन्तों ने इस सामन्त की बात का समर्थन किया था, अभय उन सबके द्वार पर घूम आया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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