Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 86
________________ तेरहवाँ चक्रवर्ती ७७ प्रभु ने कहा - " चक्रवर्ती, चक्रवर्ती अवस्था में ही मरे, तो वह सातवें नरक में जाता है ।" कूणिक का रजोगुण से प्रेरित क्षत्रिय स्वभाव नरक की प्रतिस्पर्धा में भी दौड़ गया- 'मैं एक नारी के स्थान पर जाऊँगा ? नहीं, यह नहीं हो सकता । मैं भी चक्रवर्ती के समान सातवें नरक में क्यों नहीं जा सकता ?' सर्वज्ञ महावीर कूणिक के हृदय में उछलते अदम्य दर्प की वर्ण माला को पढ़ रहे थे । उन्होंने समाधान दिया"कूणिक ! तुम चक्रवर्ती नहीं बन सकते । नियमानुसार इस अवसर्पिणी युग के बारह चक्रवर्ती हो चुके हैं । अब और कोई नया चक्रवर्ती कैसे हो सकता है !" 1 कूणिक का अहंकार सीमा तोड़ रहा था - " मैं चक्रवर्ती क्यों नहीं बन सकता । मेरी भुजाओं में बल है । मेरे पास अनेक सहस्र स्वर्ण एवं रत्नों के कोष हैं, विशालवाहिनी मेरे एक संकेत पर अपना जीवन होम देने के लिए प्रस्तुत है । बस, और क्या चाहिए चक्रवर्ती बनने के लिए ?" प्रभो ! चक्रवर्ती के लक्षण क्या हैं" प्रभो ने बताया -- “ चक्रवर्ती के शासन में चौदह रत्न होते हैं, छह खंड के साम्राज्य का अधिवर्ती होता है वह । " कूणिक के विचारों में चक्रवर्ती बनने का 'अहं' जाग उठा था । उसने चक्रवर्ती के कृत्रिम (नकली ) चौदहा रत्न तैयार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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