Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 83
________________ १२ तेरहवां चक्रवती mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm अंग और मगध का एक-छत्र सम्राट अजातशत्रु कणिक श्रवण भगवान महावीर का उच्च कोटी का भक्त नरेश था। अपने राज्य में उसने इस प्रकार का एक स्वतन्त्र विभाग कायम किया था, जो प्रतिदिन भगवान महावीर के जनपद विहार कालीन कुशल-समाचारों से राजा को सूचित करता रहे। इस विभाग में उच्च वेतन पाने वाले अनेक कुशल कर्मचारियों की नियुक्ति की गई थी। राजा कूणिक जब तक भगवान महावीर का सुख-समाचार सुन नहीं लेता था, तब नक अन्न - जल ग्रहण नहीं करता था ! इस प्रकार भगवान महावीर के प्रति उसकी अत्यन्त गहरी श्रद्धा-निष्ठा थी। __एक बार कुणिक के मन में अपनी प्रभु-भक्ति और श्रद्धा का गर्व जगा । उसने भगवान से प्रश्न किया-"भन्ते ! मैं मर कर किस गति में जाऊँगा ?" ___ “राजन् ! तुम अपनी आयु पूर्ण करके छठे नरक में जाओगे"----भगवान् ने अपनी गुम-गंभीर वाणी में सत्य को स्पष्ट किया । कणिक के मन - मस्तिष्क में जैसे बिजली कौंध गई। 'प्रभो ! मैं आपका भक्त होकर भी नरक में जाऊँगा?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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