Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 37
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ अभयकुमार को चले जाने का आदेश क्या मिला, अभीष्ट ही मिल गया। वह तो इसी आदेश की प्रतीक्षा में था। क्योंकि वह दीक्षा लेना चाहता था और सम्राट् रोकते थे । अब वह चल पड़ा वहाँ जहाँ इस प्रकार के मूर्खतापूर्ण आदेश न मिलते हों । प्रभु महावीर के चरणों में पहुँच कर अभयकुमार मुनि बन गया । २८ राजमहलों के पास पहुँच कर सम्राट् को जब सही स्थिति मालूम हुई तो अभय की बुद्धिमानी पर बाग-बाग हो गये । और, साथ ही लज्जित हो उठे अपनी मूर्खता पर | निष्कारण इतना भयंकर वहम ! इतना उतावलापन ! और, इतना अविवेक !! उनके अविवेक से यदि सचमुच ही दुर्घटना हो जाती, तो कितना अनर्थ हो जाता ? इसकी कल्पना ही सम्राट का हृदय दहल उठा। उन्हें अपनी भूल पर पश्चात्ताप होने लगा । 'उतावला सो बावला' की लोकोक्ति रह-रह कर उनकी स्मृति में टकराने लगी । त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पर्व १०1८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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