Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ __ "तुम तो श्रीमंत और सुखी लगते हो, फिर अंधेरी रात में इस प्रकार यह जानलेवा परिश्रम किसलिए कर रहे थे ?" "महाराज ! देखने में मैं अवश्य सुखी और श्रीमंत लगता हूँ। आपने सुना भी होगा, लोग मुझे मम्मण सेठ के नाम स पुकारते हैं । किन्तु, अपने मन की पीड़ा मैं ही जानता हूं। मैं एक बहुत बड़े अभाव से ग्रस्त हूं। उस अभाव की पूर्ति के लिए मैंने सर्वस्व दांव पर लगा दिया है। ये कुछ सुन्दर अलंकार और वस्त्र तो इधर-उधर आने-जाने के लिए केवल प्रतिष्ठा की दृष्टि से रख छोड़े हैं, और कुछ नहीं । महाराज, क्या बताऊँ ? सब-कुछ स्वाहा करके भी वह मेरी कमी पूरी नहीं हो रही है । और जब तक वह पूरी नहीं होगी, तब तक मुझे यह सब-कुछ करना ही होगा।" "वह क्या ?"-सम्राट ने आश्चर्यपूर्वक पूछा । __ "मुझे एक बैल की जोड़ी पूरी करनी है। एक सुन्दर बैल मेरे पास है, उसी की जोड़ी का दूसरा बैल मुझे चाहिए इसीलिए यह कठोर परिश्रम कर रहा हूं।" सम्राट् के होठों पर मधुर हास्य बिखर गया-"एक बैल के लिए इतना कष्ट ! जाओ, मेरी वृषभशाला में से जो बैल पसन्द आए, ले जाओ और अपनी जोड़ी पूरी करके आराम से रहो।' __ मम्मण सेठ राजपुरुषों के साथ मगधपति की वुषभशाला में इस पार से उस पार तक घूमता चला गया। अनेक सुन्दर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90