Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 76
________________ मांस का मूल्य ११ एक बार मगध - नरेश श्रेणिक ने राजसभा में बैठे हुए सामन्तों की ओर एक प्रश्न - भरी दृष्टि डाली । सहसा सब के हाथ जुड़ गये और दृष्टि राजा के मुख पर उतरने वाले भावों को समझने में उलझ गई। मगधेश ने प्रश्न किया"राजगृह में अभी सबसे सस्ती और सुलभ खाद्य वस्तु क्या है, जिसे प्राप्त करके साधारण - से - साधारण मनुष्य भी अपनी क्षुधा को तृप्त कर सके ?" मगधेश के प्रश्न पर सामन्त गम्भीर हो गए। विचार के पर फड़फड़ाने लगे- 'अन्न सबके लिए सुलभ है, सस्ता भी है। पर" पर कहाँ सस्ता और सुलभ है वह ? कृषक कितना कष्ट उठाकर एक - एक दाना धरती के गर्भ से बीनता है ? खून-पसीना एक कर देता है थोड़े-से अन्न के लिए। फिर भी खेती तो बिल्कुल निसर्ग पर निर्भर है । कभी अतिवृष्टि ! कभी अनावृष्टि ! कीट, पतंग, रोग ! कितने दुश्मन हैं उनके ? अनेक दुर्दैवों से बचकर कुछ थोड़ा - सा अन्न वेचारे किसान के हाथों में पहुंचता है। पसीने की जितनी बूंदें वह वहाता है, क्या उतने दाने भी प्राप्त कर सकता है ? फिर सुलभ कैसे हुआ ? अन्न क्रय करने के लिए भी धन चाहिए । अन्न से तो मांस सुलभ है। शिकार के लिए निकल गए जंगल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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