Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 74
________________ ६५ त्याग का मूल्य सभा में सन्नाटा छा गया, समागत सभी सामन्त एक दूसरे के मुँह को ताकने लगे । "कितना कठिन है ?" एक सामन्त ने कहा । " इन तीनों के त्याग का मतलब है, एक तरह से जीवन का ही त्याग फिर तो साधु ही न बन गये और तब इन स्वर्ण मुद्राओं का करेंगे क्या ?.. एक दूसरे सामन्त ने पास में बैठे सामन्त से कहा । सभा से कोई उत्तर नहीं मिला। महामंत्री फिर खड़े हुए और धीर गंम्भीर स्वर में बोले- "लगता है, हमारे वीर सामन्त एक साथ तीन बड़ी शर्तों को देख कर अचकचा गए हैं । अच्छा, तो उनके लिए विशेष सुविधा की घोषणा किए देता हूं, तीनों में से किसी एक ही प्रतिज्ञा करने वाले को भी स्वर्ण मुद्राएँ दी जा सकती हैं ।" 94 फिर भी सभा में सन्नाटा छाया रहा। कोई भी वीर सामन्त महामंत्री की इस नरम की गई शर्त को भी स्वीकार करने का साहस नहीं कर सका । महामंत्री ने सभा पर गंभीर दृष्टि डाली - "क्या कोई व्यक्ति यह साधारण-सा त्याग करने का साहस भी नहीं कर सकता ?” तभी एक समवेत ध्वनि गूँज उठी-"नहीं, नहीं, महामात्य ! यह साधरण कहाँ, यह तो असाधारण साहस है ? एक ही वस्तु के सम्पूर्ण त्याग का अर्थ है - जीवन की समस्त सुख सुविधाओं का, आमोद प्रमोदों का त्याग ! कितना - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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