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त्याग का मूल्य
सभा में सन्नाटा छा गया, समागत सभी सामन्त एक
दूसरे के मुँह को ताकने लगे ।
"कितना कठिन है ?" एक सामन्त ने कहा ।
" इन तीनों के त्याग का मतलब है, एक तरह से जीवन का ही त्याग फिर तो साधु ही न बन गये और तब इन स्वर्ण मुद्राओं का करेंगे क्या ?.. एक दूसरे सामन्त ने पास में बैठे सामन्त से कहा ।
सभा से कोई उत्तर नहीं मिला। महामंत्री फिर खड़े हुए और धीर गंम्भीर स्वर में बोले- "लगता है, हमारे वीर सामन्त एक साथ तीन बड़ी शर्तों को देख कर अचकचा गए हैं । अच्छा, तो उनके लिए विशेष सुविधा की घोषणा किए देता हूं, तीनों में से किसी एक ही प्रतिज्ञा करने वाले को भी स्वर्ण मुद्राएँ दी जा सकती हैं ।"
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फिर भी सभा में सन्नाटा छाया रहा। कोई भी वीर सामन्त महामंत्री की इस नरम की गई शर्त को भी स्वीकार करने का साहस नहीं कर सका । महामंत्री ने सभा पर गंभीर दृष्टि डाली - "क्या कोई व्यक्ति यह साधारण-सा त्याग करने का साहस भी नहीं कर सकता ?”
तभी एक समवेत ध्वनि गूँज उठी-"नहीं, नहीं, महामात्य ! यह साधरण कहाँ, यह तो असाधारण साहस है ? एक ही वस्तु के सम्पूर्ण त्याग का अर्थ है - जीवन की समस्त सुख सुविधाओं का, आमोद प्रमोदों का त्याग ! कितना
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