Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 75
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ असाधारण !'-सामन्तों के सिर नकार में हिल रहे थे । "तो फिर सामन्तों ! जिम व्यक्ति ने इन तीनों का त्याग किया हो, वह कितना महान और कितना वीर योद्धा होगा आध्यात्मिक साधना-क्षेत्र का ?" "अति महान् ! अति वीर ! अवश्य ही वह अत्यन्त कठिन एवं असाधरण साहस का कार्य करने वाला है, उसका त्याग महान है।"-एक साथ कई ध्वनियाँ गूंज उठीं। "बीर सामन्तों ! हमने कल जिस मुनि को नमस्कार किया था, वह इन तोनों का ही नहीं, बल्कि ऐसे अनेक असाधारण उग्र-व्रत तथा प्रतिज्ञाओं का पालन करने वाला वीर है, त्यागी है। उसके पास भोग के साधन भले ही अल्प रहे हों, पर भोग की अनन्त इच्छाओं को उसने जीत लिया है। त्याग का मान-दंड राजकुमार या लकड़हारा नहीं हुआ करता, व्यक्ति के मन की सच्ची विरक्ति हुआ करती है।" महामंत्री के विश्लेषण पर सामन्त मौन थे, साथ ही प्रसन्न भी । कई झुके हुए चेहरों पर पश्चात्ताप की निर्मल रेखाएँ भौ प्रस्फुटित होती देखीं महामात्य ने । दुसरे ही क्षन, जैसे एक दिव्य नवीन प्रकाश मिल गया हो, सब-के-सब चेहरे पूलक उठे और 'धन्य धन्य' के हर्ष - मिश्रित गंभौर घोष से राजसभा का कोना-कोना गूंज गया। -आवश्यक नियुक्ति, हारिभद्रीय टीका, पृ०६३ -त्रिषष्टिालाका पुरुलचरित १०-११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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