Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ४६ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ आर्द्रक द्वीप नहीं जा सका । किन्तु अपने प्रिय परदेशी मित्र के लिए उसने कुछ विशेष उपहार भेजने की एक योजना तैयार की। अभय ने सोचा - " सोना और मणि - माणिक्य की तो वहाँ भी कमी नहीं है अतः कुछ ऐसी नयी चीज भेज़, जो वहाँ नहीं है और जिसे पाकर उसका स्नेह ही नहीं, आत्मा भ जागृत हो जाये । सच्ची मित्रता तो वही है, जो मित्र के जीवन को प्रबुद्ध करने में सहायक हो । खाना-पीना, लेनादेना, यह तो सिर्फ मित्रता का बाहरी रूप है । अभय कुमार की मित्रता औपचारिक नहीं, हार्दिक होनी चाहिए ।" यह सोचकर, एक स्वर्ण - मंजूषा में वीतराग भाव जागृत करने वाला धर्म साधा सम्बन्धी वीतराग - मुद्रा का एक विशिष्ट प्रतीक रख कर, अपने दूत के हाथों अभयकुमार ने आर्द्र क कुमार को 'भेजा । साथ में एक पत्र भी दिया और उसमें लिखा कि - " मंजूषा को एकान्त में खोलें ।” - दूत आर्द्रक द्वीप में पहुँचा। आर्द्र क कुमार को आदर के साथ उसने महामात्य अभय का पत्र और मजूषा भेंट की । सरल स्नेही आर्द्र क कुमार मित्र का पत्र पाकर बहुत प्रसन्न हुआ । उसने पत्र को अपने आँखों से लगा लिया. मानो स्वयं मित्र ही मिल गया हो । मित्र के विशेष दूत का उसने बहुत सत्कार किया । एकान्त में जाकर उसने पेटी खोली, तो उसमें चमकते मोतियों और होरों की जगह वीतराग मुद्रा के रूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90