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स्नेह के धागे
आर्द्र कुमार आर्द्रक द्वीप का राजकुमार था । मगधनरेश श्रेणिक के साथ उसके पिता की गहरी मैत्री थी । समय समय पर व्यापार के लिए आने वाले सार्थवाहों के साथ मगधेश की ओर से अनेक सुन्दर और बहुमूल्य उपहार आया करते थे। आर्द्रक के पिता भी अपने द्वीप की नयी-नयी चीजें भारतवर्ष के अपने मित्र मगधनरेश को भेजा करते थे ।
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एक बार मगध के कुछ व्यापारियों के साथ महाराज श्रेणिक ने अपने मित्र नरेश को कुछ बहुमूल्य उपहार भेजे । उन्हें देखकर राजकुमार बहुत ही प्रसन्न हुआ। वह मगधपति के पुत्र महामात्य अभय कुमार के साथ मैत्री करने के लिए उत्सुक हो गया। आर्द्रक कुमार ने अपने विश्वस्त दूत के साथ अभय कुमार की सेवा में कुछ सुन्दर उपहार एवं अपने हाथ का लिखा एक पत्र भेजा ।
आर्द्र क कुमार का भाव भीना पत्र पढ़कर अभय का हृदय गद्गद् हो गया । अपने अनदेखे मित्र के प्रति उसके हृदय में अपार स्नेह उमड़ आया । मगध साम्राज्य के महामंत्री पद का गुरुतर दायित्व, राजनीति कीं जटिल ग्रन्थियाँ सन्धि विग्रह के चक्र पर - चक्र ! इस कारण अभय कुमार मिलने की इच्छा रखते हुए भी आर्द्रक से मिलने के लिए सुदूर
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