Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 67
________________ ५८ : जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ . प्रस्तत रहेंगे। एक - से - एक अप्सरा जैसी सुन्दर युवतियाँ आपकी प्रसन्न दृष्टि की प्रतीक्षा में खड़ी रहेंगी।" ... "मैं जानता हूं, मगध सम्राट ! आपको और आपके वैभव तथा ऐश्वर्य को । पर, जिस वैभव और ऐश्वर्य पर आपको इतना गर्व है, क्या आप भरोसा कर सकते हैं कि वह विपत्ति में आपका सहारा हो सकेगा ? सबट और व्याधियों से ब, आपको बचा सकेगा ?'' मुनि के तीखे प्रश्न पर श्रेणिक गंभीर हो गया। भौतिक वैभव की आस्था डगमगाने लगी । मुनि ने आगे कहना चाल, रत्रा---'सम्राट् ! यह वैभव तो मेरे पास भी कुछ कम नहीं था। किन्तु, वह मेरी रक्षा नहीं कर सका । मुझे त्राण नहीं देसका। जानते हो, मैं कौशाम्बी के नगर - श्रेष्ठी का पुत्र था । सैकड़ों ही सेवक - सेविकाएँ करबद्ध मेरी सेवा में जुटे रहते थे। धन-वैभव का अम्बार लगा था। माता-पिता का मुझ पर अपार प्रेम था। छोटे - बड़े भाई - बहनों का सहज स्नेह जो मुझे मिला, वह किसी भाग्यशाली को ही मिलता है। और, वह पतिव्रता पत्नी अनिद्य सुन्दरी, साथ ही शोल. सौजन्य की प्रतिमुर्ति । कि बहना, भोग - विलास के सब साधन उपलब्ध थे, पर...' . . . .. पर क्या ? जब यग सब वृछ, तुम्हें उपलब्ध था, तब तुग अनाथ केले ? और क्यों मिझू बने ?" मगध सम्राट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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