Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 69
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ सामने आँसू बहाने के सिवा कुछ नहीं कर सकी। 'बहन और भाई बिचारे दीन - भाव से देखते रहते । उनका स्नेह मेरे लिए सब-कुछ करने को प्रस्तुत था, किन्तु मेरी बेदना में शान्ति के लिए वे भी कुछ न कर सके। नौकर - चाकर भी हमारे परिवार के अभिन्न अंग थे, वे भी हर समय सेवा में हाथ जोड़े खड़े रहते और अपने - अपने आराध्य देवी - देवताओं से मेरे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते रहते थे। पर कोई भी मेरी पीड़ा को नहीं बँटा सका। कुछ क्षणों के लिए भी नहीं बँटा सका !" ___ मुनि की करुणा और दर्द से भरी कहानी को सुनतेसुनते सम्राट् श्रेणिक स्वयं अपने को भी असहाय-सा देखने लगा। मुनि ने आगे कहा--राजन् ! पीड़ा से व्याकुल एक दिन मेरे मन में संकल्प जगा--"यह जीवन कितना असहाय है ? मानव अपने सुख के लिए ऊँचे - ऊँचे महल खड़े करता है, संसार के साथ नाते - रिश्ते जोड़ता है। माता - पिता और भाई - बहन की ममता में डूबा रहता है। पत्नी और बच्चों के स्नेह में अपने को भूल जाता है ।” सोचता है-- मेरे दुःख - सुख के साथी हैं ।' पर राजन् ! जब दुःख आता है, पीड़ा आती है, तो उसको कोई नहीं बचा सकता । सब देखते रह जाते हैं, कोई उसका दर्द बाँट नहीं सकता । कष्ट और वेदना से कोई उसे उबार नहीं सकता। बस, यह ? मेरी अनाथता और असहायता थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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