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जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएं
गया, तो इस बैल का सींग पूरा हो जायेगा, मेरी अधूरी जोड़ी पूरी हो जायेगी और महाराज, तभी मेरी अन्तिम सांस सुख से निकल सकेगी।"
राजा, रानी और महामंत्री अभय सभी चकित और भ्रमित होकर मम्मण की बात को सुन रहे थे । एक ओर सौने के रत्न जटित बैलों पर आश्चर्य हो रहा था, तो दूसरी ओर उसकी बैल - जैसी बुद्धि पर तरस भी आ रहा था । सम्राट ने तभी महारानी चेलना को ओर सस्मित देखा--- "क्यों देवी, क्या तुम इसकी गरीबी मिटा सकती हो ? यह अधूरी जोड़ी पूरी कर सकोगी ?"
रानी की कमल • जैसी सदा खिली रहने वाली आँखे साहसा मनुष्य की अथाह ममता पर करुणा से गीली हो गई। "महाराज ! मनुष्य की ममता में, ऐसी एक क्या, अनन्त जोड़ियां पूरी होने पर भी, आखिरी जोड़ी तो सदा - सर्वदा अधूरी ही रहेगी.....।"
-आचारांग, शीलाँग-टीका, पत्र १२५
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