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४२ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ करते हुए बैल की चर्चा की तो रानी भी देखने के लिए उतावली हो गई। महाराज, महामंत्री अभय और महारानी चेलना को साथ लिये मम्मण के द्वार पर पहुंचे। पूर्व पुरखों से चला आ रहा भव्य महल था, बहुत बड़ी अट्टालिका थी। मम्मण ने महाराज से भीतर पधारने के लिए कहा, तो सम्राट ने कहा-"भाई, सीधे अपनी गोशाला में चलो, हमें तो वह बैल देखना है ।" ___ मम्मन ने कहा-"महाराज ! मेरा बैल गोशाला में नहीं, घर में ही है। अभी आपको दिखाऊँगा।"
मम्मण सेठ राजा, रानी और महामंत्री को अपने भवन में ले गया। रानी सोच रही थी-“ऐसे भव्य महल में भी कभी बैल रहते हैं ? कैसा वेवकूफ है यह बनिया ?" भवन का एक के बाद एक आँगन पार होता रहा, ओर अन्त में वे एक विशाल कक्ष में भूमिगृह के द्वार पर पहुंच गए । राजा ने कहा-“सेठ, हम तुम्हारा घर देखने नहीं आए, बैल देखने आए हैं।" __ "हां, महाराज ! मैं भी बैल ही तो दिखा रहा है।" तभी सेठ ने सब के साथ भूमिगृह में प्रवेश किया, और आगे बढ़कर ज्यों ही परदा हटाया तो चारों ओर रंग-बिरंगा प्रकाश फैल गया। सामने ही रत्नों और मणियों से जड़ा हुआ एक सोन का बैल खड़ा था, उसकी ज्योति चारों ओर छिटक रही थी · आँखों में बड़े बड़े वैडूर्य मणि जड़े हुए थे । सींग और
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