Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 57
________________ ४८ ४८ जैन इतिहासकी प्रसिद्ध कथाएँ बहुत दूर निकल गया। इधर - उधर की भाग - दौड़ एवं अमोद - प्रमोद के बाद सब सैनिक विश्राम करने लगे, तो गहरी नींद में सो गये । अवसर पाकर आर्द्र क कुमार चुपकेसे, हवा को भी मात देने वाले एक तेजतर्रार घोड़े पर चढ़ा और कुछ ही क्षणों में एक अज्ञात पथ से बहुत दूर निकल गया। काफी दूर समुद्र-तट पर जाकर उसने घोड़े को छोड़ा और एक समुद्री जहाज में बैठकर भारतवर्ष पहुँच गया। • भारत में आकर उसने पूर्वजन्म की स्मृति के आधार पर मुनिव्रत ले लिये। मुनिवेष में वह अभयकुमार से मुलाकात करने को राजगृह की ओर चल पड़ा। रास्ते में एक वसन्तपुर नाम का नगर आया । आद्रक मुनि वहाँ नगर के बाहर एक देव मन्दिर में ठहर गये और एक कोने में ध्यान करने को खड़े हो गये। सन्ध्या का समय था। कुछ - कुछ झुटपुट अँधेरा हो चला था। और, इस बीच मन्दिर के अहाते में कुछ कन्याएँ खेल रहीं थीं। सहज ही पति - वरण के खेल की कल्पना जाग्रत हो गई। और इस खेल-ही-खेल में कन्याओं ने आँख मींच कर दौड़ना शुरू किया और मन्दिर के एक-एक खंभे को पकड़ कर लिपट गई । परस्पर मजाक करने लगीं। एक ने कहा—'यह मेरा पति है।' दूसरी ने कहा- 'देख, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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