Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 61
________________ ५२ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ आक कुमार ने श्रीमती को स्वीकार कर लिया। वह उसके प्यार में उलझ गये। चले थे किधर और पहुंच गए किधर । प्राचीन कथाकार कहते हैं कि इसमें पूर्व जन्म के स्नेह सम्बन्ध की कुछ कड़ियाँ जुड़ी थीं, जो अभी तक टूट नहीं पाई थीं। कुछ ही दिनों बाद श्रीमती की गोद हरी-भरी हो गयी । बालक की मधुर, उन्मुक्त किलकारियों से घर का आंगन गूंजता रहता । वालक पाँच वर्ष का हुआ होगा कि आईक कुमार का मन एक दिन चिन्तन में डूब गया। साधना के उस उन्मुक्त एवं पवित्र जीवन को छोड़कर स्नेह और ममता के इस बन्धन में फंस जाने पर उन्हें पश्चात्ताप होने लगा। और, फिर ध्यान आया कि जिस लक्ष्य के लिए माता-पिता के अथाह प्यार और दुलार को ठुकरा कर घर से निकला था, उससे मैं कितनी दूर भटक गया। एक संसार छोड़ा, तो यह दूसरा नया संसार बसा लिया। महा - समुद्र तैर कर आया, तो क्षुद्र तलैया में डूब गया। आर्द्र क कुमार का मन पुनः संसार से विरक्त हो उठा। संयम लेने की बात उत्नी से कही । श्रीमती ने सुना तो उसकी आँखें भर आई। प्रेम और स्नेह की हजार - हजार सागात भी आर्द्रक कुमार के निश्चय को बदल नहीं सकी। वह अपने निश्चय पर दृढ़-से-दृढ़तर होते गये। एक दिन श्रीमती चरखा लेकर सूत कातने बैठी। बेटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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