Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 59
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ घर गई, मुनि वहाँ से चुपचाप विहार कर आगे चल दिए। __ श्रीमती सयानी तो थी ही, माता - पिता विवाह की बातें करने लगे, तो कुछ दिन तो वह चुप रही। परन् , जब देखा कि अब वात आगे बढ़ेगी, तो उसने एक दिन विनम्रता से माता के समक्ष अपना विचार प्रकट कर दिया। मातापिता और परिजन सभी चोंक उठे। "मुनि के साथ विवाह? यह क्या बहक ? पागल हो गई है क्या ? और फिर उसका अता-पता भी तो कुछ नहीं। कौन है, कहाँ का है, कहाँ गया है ?" श्रीमती को बहुत समझाया गया। एकसे - एक बढ़कर देवकुमार-से-सुन्दर लड़कों के चित दिखाये गए, पर वह तो अपने निर्णय से नहीं हिली, सो नहीं हिली ! 'पति करूंगी तो उसी को, नहीं तो आजीवन कुमारी रहूंगी-श्रीमती के दृढ़ निश्चय के सामने सबका समझना-बुझना व्यर्थ गया। समय बीतना गया । महीने और वर्ष गुजरते गए। श्रीमती के पिता ने इधर - उधर दूर तक मुनि की बहुत खोजबीन की, परन्तु कोई अता - पता नहीं लगा। धीरे-धीरे श्रीमती की सभी सहेलियों के विवाह होते गए। पर श्रीमती अपने हठ पर कुमारी ही रही। वह उसी अनजाने प्रीतम की रह में आँखें बिछाए बैठी रही। सुबह से शाम तक गवाक्ष में बैठी राह से गुजरने वालों को निहारती रहती, पर वह नही मिला । श्रीमती के पिता ने एक विशाल दान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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