Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 58
________________ स्नेह के धागे ४६ यह मेरा पति है इस प्रकार प्रत्येक कन्या अपने - अपने पति की घोषणा करने लगी। इन लड़कियों में श्रीमती नाम की एक अति सुन्दर श्रेष्ठी - कन्या भी थी। उसने खंभे के भरोसे एक ओर ध्यान में खड़े आद्रक मुनि को ही पकड़ लिया । वस, फिर क्या था, साथ की सहेलियाँ ले उड़ी इस वात को-"ओह ! हो ! तेरा पति तो बड़ा सुन्दर हैं।" श्रीमती ने आँख खोली, देखा तो बस वह कुछ क्षण देखती ही रह गई। मुनि के गुलाबी चेहरे पर एक अद्भुत सौन्दर्य चमक रहा था। अद्भुत ओज, विलक्षण सौम्यता और ताजा खिले फूलों-सी सुकुमारता-श्रीमती मुग्ध भाव से मुनि का रूप आँखों - ही - आँखों पीने लगी। ___ "ओह ! हो ! क्या देख रही है ? तुझे तो बहुत सुन्दर पति मिला है। अरी तेरी तो तकदीर खुल गई।" सहेलियों ने चुटकी ली। श्रीमती की आँखें सहज लज्जावश नीचे झुक गई। उसने मन-ही-मन मुनि को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। मूनि । चरगों में सहज ही उसका मस्तक झुक गया । हृदय में स्नेह उमड़ आया । आँखों में प्यार छलछला उठा। भनि ने देखा--यह क्या ? हँसी - हँसी में यह तो नई विपत्ति आ रही है। ज्यों ही लड़कियाँ खेल कर अपने-अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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