Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 50
________________ अधूरी जोड़ो ४१ हृष्ट-पुष्ट वृषभ गरज रहे थे, जैसे हाथी के बच्चे हों । किन्तु, मम्मण को एक भी वृषभ पसन्द नहीं आया । वह खाली हाथ सम्राट् के सम्मुख आ खड़ा हुआ । सम्राट् ने पूछा -' क्यों ? क्या बात है ? कोई बैल पसन्द आया ? बहुत बैल हैं, एक-से-एक सुन्दर और बलवान । जो पसन्द आया हो, ले जाओ।" मम्मण ने सिर हिलाया - "महाराज मेरे बैल की जोड़ी का एक भी बैल आपकी 'वृषभ - शाला' में नहीं है । " श्रेणिक ने आश्चर्य से पूछा - 'ऐसा कैसा बैल है, जिसकी जोड़ी का बैल मगध के हजारों बैल में भी नहीं मिल सका ? लाओ अपने बैल को, जरा देखें तो ऐसा कैसा बैल है ?" मम्मण ने कहा- "महाराज ! मेरा बैल यहाँ नहीं आ सकता। आप देखना चाहें, तो मेरे घर को पवित्र कीजिए ।" श्रेणिक की उत्सुकता और बढ़ गई। ऐसा कैसा विचित्र बैल होगा, जो मगध की वृषभ - शाला में भी उसकी सानी का बैल नहीं ? नहीं, बनिये का झूठा अहंकार है । अभी चल कर देखेंगे। महामंत्री अभयकुमार के परामर्श से बैल देखने के लिए अगला ही दिन निश्चित हो गया । व्यक्ति के मन में जगी हुई उत्कण्ठा अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकती । महाराज ने रानी चेलना से गत रात्रि की घटना का जिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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