Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 41
________________ ३२ जैन इतिहास को प्रसिद्ध कथाएँ ही चला गया । दूर-दूर तक मैदान साफ पड़े थे, कहीं भी पानी की एक बूंद नजर नहीं आ रही थी। मरु-बालुका पर केवल मृगमरीचिका का भ्रान्त जल ही चमकता था और कुछ नहीं। पानी के बिना सब के प्राणों पर बन रही थी। उदायन ने आज के अजमेर (राजस्थान) के पास एक पहाड़ की घाटी में पड़ाव डाला और वहाँ स्वर्गीय पत्नी प्रभावती देवी का स्मरण किया। देवी प्रभाव से मरुदेश की प्यासी धरती पर सघन जलधर बरस पड़े। चारो ओर शान्त और सरस वातावरण छा गया। देवी ने वहाँ एक सदानीरा पुष्करिणी का निर्माण किया, जिसके कारण आगे चलकर उसका नाम 'पुष्कर तीर्थ' पड़ गया, जो आज भी नागपर्वत की घाटी में स्थित है। सेना ने हर्षोल्लास के साथ आगे कूच किया और मालव-धरा को रौंदती हुई अवन्ती के रण क्षेत्र में जाकर डट गई। राजधानो उज्जयिनी के चारों ओर घेरा डाल दिया। दयावीर उदायन ने भयंकर नर-संहार से बचने के लिए चन्द्रप्रद्योत को द्वन्द्व-युद्ध के लिए आह्वान किया। दोनों का गजयुद्ध के बदले रथयुद्ध निश्चित हुआ। किन्तु, चन्द्रप्रद्योत का हृदय धड़क रहा था कि रथ-युद्ध में वह धनुर्धर उदायन के समक्ष टिक नहीं सकेगा। इसलिए अपने चालाकी की और दूसरे दिन रथ की जगह अपने दुर्दान्त अनलगिरी हाथी पर चढ़कर मैदान में आया। उदायन ने उसे प्रतिज्ञा के विरुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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