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अधूरी जोड़ी
भादों को कालो-कजरारी रात ! कज्जल-गिरि-जैसे भयंकर मेघ आकाश में छाए हुए हैं। काली घटाओं में कभीकभी गर्जना के स्वर फूटते हैं, तो लगता है वैभारगिरि की कन्दराओं में कोई शेर दहाड़ उठा हो। बिजलियाँ कौंध रही हैं बरसात की मदमाती हवाएँ तरु - लताओं से छेड़छाड़ करती घूम रही हैं । महाराज थेणिक महारानी चेलना के साथ वर्षा-रात्रि की नीरव छटा देखने के लिए गवाक्ष में बैठे हैं । इतने में ही काल रात्रि के गहन अंधकार को चीरतो हुई बिजली चमकी, तो रानी चेलना ने देखा कि एक अति वद्ध पुरुष सामने उफनती नदी के तेज प्रवाह में बहती हुई लकड़ियाँ बीन रहा है ।
रानी ने अंगुली के इशारे से राजा को बताया-"महाराज! देखिए ईस भयंकर वर्षा की रात में कोई बूढ़ा नदी की धारा में से लकड़ियाँ बीन रहा है। "बिजली रह-रह कर कौंध ही रही थी ! उसके प्रकाश में राजा ने भी देखा कि सचमुच हो एक जर्जर - शरीर वृद्ध वर्षा की मध्यरात्रि में भी जीवनसंघर्ष में जूझ रहा है, साक्षात् मृत्यु से खेल रहा है। जरा भी पैर उखड़ जाए और नदी की उद्दामधारा में वह जाए, तो लाश तक का भी पता न लगे। राजा विचार में पड़ गयाइतना दीन-दरिद्र ! दिन भर के कठोर कम से भी दो रोटी
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