Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 22
________________ सामायिक का मूल्य भगवान महावीर के श्रीमुख से जब सम्राट् श्रेणिक ने यह सुना - "तुम्हें नरक में जाना पड़ेगा " तो भक्तहृदय सम्राट् सहसा काँप - काँप उठे । "प्रभो ! मैं आपका भक्त ! " और नरक जाऊँगा ! क्या मेरी भक्ति का कोई मूल्य नहीं ? उसमें कोई सचाई नहीं ?" - श्रेणिक ने दीनभाव से प्रभुचरणों में निवेदन किया । RU भगवान ने समझाया - " श्रेणिक | श्रद्धा और भक्ति के बल पर नरक से त्राण पाना तो क्या चीज है, स्वर्ग के सिंहासन भी इनको शक्ति के सामने असंभव नहीं हैं । किन्तु, भक्त बनने से पहले किये गए अपने उग्र असत्कर्मों का फल भोग तो करना ही पड़ता है न !" • सम्राट् श्रेणिक के मन में उथल-पुथल मच गई। नरक की कल्पना उनके मन मस्तिष्क को बुरी तरह मथने लगी । नरक से त्राण पाने के लिए वे सब कुछ करने के लिए उद्यत हो गए। वे सोचने लगे - 'यह विशाल साम्राज्य ! यह अक्षय कोष ! क्या नरक से नहीं बचा सकते ?" "प्रभो ! किसी भी तरह में नरक से बच सकू, वह मार्ग जानना चाहता हूँ । उद्धार करो, प्रभो ! सुभ दिन पर करुणा करो। मैं अपना विशाल साम्राज्य और समस्त राज्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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