Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 24
________________ सामायिक का मूल्य सम्राट को आवश्यकता पड़ी है ? और वह भी इतनी बड़ी आवश्यकता कि स्वयं महाराज पधारे ! सम्राट् ! मुझे लज्जित न कीजिए, आपके लिए मेरा सर्वस्व प्रस्तुत है।" __ "श्रावक ! वस्तु, नहीं, तुम्हारी एक सामायिक चाहिए, सिर्फ एक सामायिक ! बोलो, किस मूल्य पर दे सकते हो ?" ___ "महाराज, सामायिक ?'-पूणिया श्रावक सम्राट के मुख की ओर आश्चर्य से देखने लगा। "हां, श्रावक : सामायिक ! प्रभु ने कहा है तुम्हारो एक सामायिक से मेरा नरक टल सकता है । बोलो, तुम्हें, क्या मूल्य चाहिए ? संकोच न करो, मैं पूरा मूल्य चुकाऊंगा।" पूणिया श्रावक ने गंभीर हो कर कहा-"महाराज ! मेरे लिए यह बिल्कुल नयी बात है । मैं सामायिक का मूल्य क्या बताऊं ? जिसने लेने के लिए कहा है, वही उसका मूल्य भी बता सकता है । आप प्रभु से ही पूछिये कि एक सामायिक का मूल्य क्या हो सकता है ।" दूसरे दिन सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही अत्यन्त भावविह्वल मुद्रा में उत्सुक महाराज श्रेणिक प्रभु के चरणों में उपस्थित हुए । प्रार्थना की - "प्रभु ! पूणिया श्रावक सामायिक देने को तैयार है । कृपया, यह बतलाइए कि एक सामायिक का क्या मूल्य हो सकता है ? मैं अपना समस्त राज्य-कोष दे सकता हूँ । कुछ भी मूल्य हो, मुझे एक सामायिक अवश्य ही लेनी है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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