Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 25
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ प्रभु ने देखा-"सम्राट् का राजस् अहंकार और अधिक उद्दीप्त हो रहा है। वह भौतिक वैभव के द्वारा आध्यात्मिक समाधान चाहता है ।" प्रभु ने कहा- “सम्राट ! सामायिक की भौतिक सम्पत्ति के साथ क्या तुलना ? यदि भूतल से चन्द्र-लोक तक स्वर्ण, मणि एवं रत्नों का अंबर लगा दिया जाय, तब भी सामायिक का मूल्य तो क्या, सामायिक की दलाली भी पूरी नहीं हो सकती।" भगवान् ने समाधान की दिशा में एक और स्पष्टी करण प्रस्तुत किया-'राजन् ! जीवन के अन्तिम क्षण में मृत्यु के द्वार पर पहुँचे हुए किसी प्राणी को क्या कोटी स्वर्ण मुद्रा या मणि-मुक्ता देकर बचाया जा सकता है ?" "भगवान् ! यह तो असम्भव है !" 'तो सम्राट् ! जीवन का मूल्य कितना महान् है ? कोटीकोटी स्वर्ण एवं मणि-मुक्ता के मूल्य से भी जीवन का एक क्षण प्राप्त नहीं होता । ऐसी स्थिति में, जबकि सामायिक का साधक अनन्त-अनन्त प्राणियों को जीवन के लिए अभय अर्पण करता है, तो सामायिक का मोल, मोल से परे अनमोल की कोटी पर पहुंच गया न ! राजन् ! सामायिक तो समता का नाम है। राग-द्वेष की विषमता को चिन्ता से दूर करना और साधारण संसारी जन से राग-द्वेष का विजेता जिन बनना, यही सामायिक का आध्यात्मिक अनन्त मूल्य है। उसे पाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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