Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ १४. जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ कोष लुटा सकता हूँ, मुझे नरक से मुक्त होने का उपाय बतलाइए, भगवन् !” __ भगवान् महावीर के सर्वग्राही ज्ञान में झलक रहा था"सम्राट के अन्तर में रमा हुआ साम्राज्य और कोष का दर्प !" साम्राज्य और कोष लुटा दूंगा-'यह भी एक गर्व है । और जहाँ गर्व है, वहाँ बन्धन ही है, मुक्ति कैसी ? श्रेणिक का धैर्य अपनी सीमाएँ तोड़ रहा था-"प्रभो ! कृपा कीजिए, नरक से मुक्त होने का मार्ग बतलाइए। प्रभु की गम्भीर वाणी मुखरित हुई-"श्रेणिक ! तुम्हारे उद्धार का एक उपाय हो सकता है। यदि पूणिया श्रावक ( पुण्य श्रावक ) की एक सामायिक का फल तुम्हें प्राप्त हो जाय, तो तुम्हारी नरक टल सकती है।" श्रेणिक का हृदय बाँसों उछलने लगा-'एक सामायिक का क्या मूल्य हो सकता है ? हजार नहीं, तो लाख, नहीं तो करोड़ स्वर्ण मुद्रा ! और क्या ? बस, यह तो बहुत सहज उपाय है। पूणिया श्रावक के पास स्वयं पहुँचे महाराज, और बड़ी कातरता से कहने लगे-"श्रावक श्रेष्ठ ! मैं एक इच्छा लेकर तुम्हारे द्वार पर आया हूँ। जो मांगोगे, वही मूल्य दूंगा, मुझे निराश मत लौटाना ।" "महाराज ! कहिए न, मेरे - जैसे साधारण गृहस्थ के यहाँ ऐसी कौन-सी दुर्लभ वस्तु है, जिसकी आप-जैसे महान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90