Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 15
________________ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ कूच कर गया। अर्जुन धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ा। उनके शरीर का सत्त्व जैसे निचोड़ लिया गया हो, वह एकदम सुस्त और शिथिल हो गया। क्रोध उसका शान्त हो गया। आज बहुत दिनों बाद उसमें विचार की एक लहर उठी - 'यह मनुष्य नहीं, देवता है ! मौत के सामने जूझने आया और मौत को जीत लिया इसने ! आज तक कोई मनुष्य मेरे सामने टिक नहीं सका। यह टिका भी, और शस्त्र के बिना ही अपने आत्मबल मे दुर्दण्ड यक्ष-शक्ति को परास्त भी कर दिया। हो न हो, कोई महान् आत्मा है !' सुदर्शन अभी तक ध्यान में लीन था। अर्जुन माली भक्ति से गदगद हो कर उसके चरणों में गिर गया-देव ! मुझे क्षमा कर दो ! वास्तव में तुम कोई महान शक्ति हो । मैंने जीवन-भर बहुत हत्यार की हैं, तुम्हारे जैसे देवपुरुष पर भी मेरे अन्दर का राक्षस उबल पड़ा था, किन्तु तुम्हारे अभय और क्षमा के सामने वह पराजित हो गया, मुझे क्षमा करो! बताओ, मैं इस जघन्य पाप से कैसे मुक्त हो सकूगा ! मैंने व्यर्थ ही पाशविक शक्ति के अहंकार के मद में निरपराध जनता के प्राण लूटे हैं।" सुदर्शन ने ध्यान खोला, अर्जुन को चरणों में झुका हुआ देखा, तो प्रेम से ऊपर उठाते हुए बोला "अर्जुन, उठो ! तुम अब भी अपने जीवन को सुधार सकते हो । आसुरी -भाव को छोड़कर दैवी-भाव की ओर बढ़ो। चलो, भगवान् महावीर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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