Book Title: Jain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 19
________________ १० जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ वृद्ध ने बगल से बढ़कर महामंत्री अभय कुमार से कहा"महामंत्री ? तुम चाहे जीओ, चाहे मरो।" अब तो सब केसब क्रोध- मिश्रित आश्चर्य से बुड्ढ़े की ओर देखने लगे कि यह क्या बकवास कर रहा है ? कभी कुछ कहता है, और कभी कुछ । मालूम होता है -- बूढ़े का दिमाग ठिकाने पर नहीं है । इतने में ही वृद्ध ने काल - शौकरिक को सम्बोधित किया-"भद्र ! तुम न मरो, न जीओ !" सारी सभा स्तब्ध थी ! कौन है यह बुड्ढा ? क्या पहेलियाँ-सी बुझा रहा है ! क्या मतलब है आखिर इस जीने और मरने की बात का ? सब लोग परस्पर घुसुर-पुसुर कर ही रहे थे कि बुड्ढा अचानक ही पलक झपकते गायब ? ... सम्राट ने प्रभु से निवेदन किया-"भन्ते ! यह विचित्र व्यक्ति कौन था ? आपका अविनय और यह बकवास ! क्या इसका कोई गूढ़ अर्थ है ? या, यों ही बुढ़ापे की मानसिक दुर्वलता है यह !" प्रभु ने धीर-गंभीर वाणी में कहा - 'राजन् ! उसे मनुष्य मत समझो, वह देव था। उसकी इन पहेलियों में बकवास नहीं, जोवन का अमर सत्य छिपा है।" "प्रमु वह सत्य क्या है ? आप समझाएं तो कुछ पता लगे।" "राजन् ! वृद्ध ने तुमसे कहा कि सम्राट जीते रहो !" इसका फलितार्थ है कि आज तुम्हारे सामने भौतिक ऐश्वर्य का अम्बार लगा है । तुम्हें यहाँ भोग और सुख के सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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