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जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ
अर्जुन प्रभु के चरणों में प्रवजित हो गया। उसने जीवन भर के लिए षष्ठोपवास ( दो दिन का उपवास, बेला) का तपोव्रत ले लिया और आत्म - शुद्धि की साधना के महापथ पर अग्रसर हो गया। वह भिक्षा के लिए राजगह में जाता तो कुछ लोग उसकी साधना पर अब भी शंकाकुल हो उठते। कुछ अपने बन्धु-बान्धवों का हत्यारा समझकर उसे पीटते , गालियाँ देते, त्रास देते । पर, मुनि अर्जुन उन कष्टों और प्रताड़नाओ को चुपचाप सहन कर जाते, लोगों के क्रोध एवं आक्रोश को पी जाते। क्रूर हत्यारा अर्जुन अब क्षमा का देवता बन गया था। समभाव की अचल साधना में स्थिर होकर अर्जुन मुनि अपने लक्ष्य की ओर बढ़े, तो बढ़ते ही चले गए। और, एक दिन केवल ज्ञान की अमर-ज्योति उनके अन्तर में जल उठी । और, वे सदा-सर्वदा के लिए कर्म-बन्धन से मुक्त हो गए !
-- अन्तकृदशा, ६३
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